भगवान् के रहनेके पाँच स्थान
पाँच महायज्ञ
व्यासजी बोले -- शिष्यगण! में तुमलोगोकों पाँच धर्मोंके आख्यान सुनाउँगा! उन पाँचोंमेंसे एकका भी अनुष्ठान करके मनुष्य सुयश, स्वर्ग तथा मोक्ष भी पा सकता है! माता-पिताकी पूजा, पतिकी सेवा, सबके प्रति समान भाव, मित्रोंसे द्रोह न करना और भगवान् श्रीविष्णुका भजन करना -- ये पाँच महायज्ञ हैं!
पहले माता-पिताकी पूजा करके मनुष्य जिस धर्मका साधन करता है, वह इस पृथ्वीपर सैंकड़ों यज्ञों तथा तीर्थयात्रा आदिके द्वारा भी दुर्लभ है! पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है, और पिता ही सर्वोत्कृष्ट तपस्या है! पिताके प्रसन्न हो जानेपर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं! जिसकी सेवा और सदगुणोंसे पिता माता सन्तुष्ट रहते हैं, उस पुत्रको प्रतिदिन गंगास्नानका फल मिलता है! माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओंका स्वरुप है; इसलिये सब प्रकारसे यत्नपूर्वक माता- पिताका पूजन करना चाहिये! जो माता-पिताकी प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपोंसे युक्त समूची पृथ्वीकी परिक्रमा हो जाती है! माता-पिताको प्रणाम करते समय जिसके हाथ, मस्तक और घुटने पृथ्वीपर टिकते हैं, वह अक्षय स्वर्गको प्राप्त होता है! जबतक माता-पिताके चरणोंकी रज पुत्र के मस्तक और शरीरमें लगती रहती है, तभीतक वह सुद्ध रहता है! जो पुत्र माता-पिताके चरण- कमलोंका जल पिता है, उसके करोड़ों जन्मोंके पाप नष्ट हो जाते हैं! वह मनुष्य संसारमें धन्य है! जो नीच पुरुष माता -पिताकी आज्ञाका उल्लंघन करता है, वह महाप्रलय पर्यन्त नरकमें निवास करता है! जो रोगी, वृद्ध, जीविकासे रहित, अंधे और बहरे पिताको त्यागकर चला जाता है, वह रौरव नरकमें पड़ता है! इतना ही नहीं, उसे अन्त्यजों, मलेच्छों और चाण्डालोंकी योनिमें जन्म लेना पड़ता है! माता- पिताका पालन -पोषण न करनेसे समस्त पुण्योंका नाश हो जाता है! माता-पिताकी आराधना न करके पुत्र यदि तीर्थ और देवताओंका भी सेवन करे तो उसे उसका फल नहीं मिलता!
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