प्रवचन नंबर १८
दो बात आपसे बनने में आवे तो बहुत ही उत्तम है, नहीं तो एक ही बात की आप भगवान की स्मृति हर वक्त रखिये | इससे सबकुछ हो सकता है | महर्षि पतंजलि भी कहते हैं – भगवानके नाम का जप और स्वरुप का ध्यान करना चाहिए, इससे सारे विघ्नों का नाश हो जाता है | भगवान गीताजी (९/३०) में भी कहते हैं – “मेरी भक्ति का प्रभाव सुनकर, यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त हुआ मेरेको निरंतर भजता है, तो वह साधू ही मानने योग्य है; क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है अर्थात उसने भली भाँती निश्चय कर लिया है की परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है |”
तुलसी दासजी भी कहते हैं –
जबही नाम हिरदे धर्यो, भयो पापको नास |
मानो चिंगी आगकी, परी पुरानी घास ||
निरंतर भगवानके चिंतन से भगवानकी प्राप्ति अवश्य हो जाती है | अन्त्काल्में तो हो ही जाती है | पहले भी हो सकती है | अपने तो पुकार लगानी चाहिए | पुकार हो प्रेम की | केशव केशव कुकिये ना कुकिये असार | यह तो सामान्य बात बताई, अब विशेष बात बताई जाती है –
हमें अपने घर जाकर सब के साथ प्रेमका व्यवहार करना चाहिए | एक ही बात है की स्वार्थ का त्याग करना चाहिए | स्वार्थ त्याग करनेसे प्रेम होता है | स्वार्थ त्याग ऐसी चीज़ है जो दूसरों को आकर्षित करनेवाली है | यह मोहनी मन्त्र है, इससे दूसरों को वश में करने की अलौकिक शक्ति है | स्वार्थ त्याग से आपही प्रेम होता है | यह बात हमें सीखनी चाहिए, इससे अलौकिक लाभ है | जब तक आपकी भोग और आराम में बुद्धि रहेगी तब तक आपका उद्धार नहीं हो सकता | जब तक आप भोग और आराम चाहते रहेंगे तब तक आप इश्वर से दूर रहेंगे | आज तक आपको भगवान की प्राप्ति नहीं हुई इसकी जड़ में प्रधान कारण भोग और आराम है| परमात्मा की प्राप्ति में विघ्न है तो यही है | साधन में रुकावट है तो इसीसे | इसलिए यदि परमात्मा की प्राप्ति आवश्यकता है तो इन्हें छोडना पड़ेगा | मन तो एक है चाहे परमात्मा में लगाओ, चाहे विषयों में |
कबीरा मन तो एक है, भावे जहां लगाय |
भावे हरिकी भक्ति कर, भावे विषय कमाय ||
चाहे जिस प्रकार हो, आपको अपना मन परमात्मा में लगाना चाहिए| मनको परमात्मा में लगाना ही होगा |
मन फुरना से रहित कर जौ ना विधि से होय |
चाहे भक्ति कर चाहे योग कर ||
इस समय योग और ज्ञान मार्ग कठिन है | इसलिए भक्ति करने की बात कही जाती है | इश्वर के प्रेम में पागल हो जाना चाहिए | फिर देखो मजा |
भोग और विषयों में जितना आपको आनन्द प्रतीत होता है उससे लाख गुना ज्यादा आनन्द वैराग्य में है| और जब आगे बढ़ जाता है तो संसार से उपरति हो जाती है, तब और भी आनन्द अधिक हो जाता है | और जब परमात्मा का ध्यान होता है तो उस सुख की तो जाती ही दूसरी है | जब परमात्मा प्राप्त हो जाते हैं तो उस सुख की तो बात ही क्या है ! परमात्मा की प्राप्ति कठिन भी नहीं है | भगवान ने गीताजी (७/१४) में कह दीया है की – “क्योंकि यह अलौकिक अर्थात अति अद्भुत त्रिगुणमई मेरी योगमाया बड़ी दुस्तर है, परन्तु जो पुरुष मेरेको ही निरंतर भजते हैं, वे इस मायाको उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात संसार से तर जाते हैं |”
इसलिए हमें लाख काम छोडकर वाही काम करना चाहिए, जिसके लिए हमें मनुष्य शरीर मिला है | संसार में ऐसा कोई काम नहीं जो हमने नहीं किया, किन्तु परमात्मा की प्राप्ति अभीतक नहीं की, यह काम तो करना ही है | मनुष्य का शरीर पाकर विषयों में मन देना तो मूर्खता है |
नर तनु पायी बिषय मन देहि | पलटी सुधा ते सठ बिष लेहीं ||
परमात्मा अमृत, बिषय भोग विष है | विष खानेवाला तो विष खाने से एक ही बार मरता है, विषय भोगरुपी विष को खाने से बार-बार जन्मता-मरता ही रहता है | इसलिए अमृत रुपी परमात्मा का सेवन करना चाहिए | यही प्रधान बात है | और गंगा के किनारेसे जाकर घरपर नित्य-प्रति स्नानादि करके संध्या, गीतापाठ तथा ध्यान करना चाहिए | तथा भगवानकी मानसिक पूजा करनी चाहिए | साकार-या निराकार कोई सा भी ध्यान करना चाहिए |
प्रात:काल – सांयकाल ध्यान-सहित नामजप करना तथा हर वक्त भगवान को याद रखते हुए ही काम करते रहना चाहिए | भजन-ध्यान की खुराक बना लेनी चाहिए | अपने मनमें निश्चय करलेना चाहिए की हम भगवान का भजन-ध्यान करेंगे, चाहे प्राण भले ही चले जाय| ध्यान के लिए प्रात:काल और सांयकाल का समय बहुत ही उत्तम है | यहाँ गंगाजी के किनारे का चित्र याद करलें तो हमारे चित्त में वैराग्य उत्पन्न हो सकता है | भजन-ध्यान खूब श्रद्धा और प्रेमसे करें | मनुष्य प्रेमसे मग्न होकर थोडा भी भजन करता है तो भगवान प्रसन्न हो जाते हैं | इसी प्रकार संध्या और गायत्री जप प्रेमसे करना चाहिए |
[पुस्तक 'भग्वान्नाम महिमा एवं परम सेवा का महत्त्व' श्री जयदयाल जी गोयन्दका ] शेष अगले ब्लॉग में .....