|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, अमावस्या, बुधवार, वि०
स० २०६९
महात्मा बनने के मार्ग में मुख्य विघ्न
गत ब्लॉग से आगे...... ज्ञानी, महात्मा और भक्त कहलाने
तथा बनने के लिए तो प्राय: सभी इच्छा करते
है, परन्तु उसके लिए सच्चे हृदय से साधन करने वाले लोग बहुत कम है | साधन करने
वालों में भी परमात्मा के निकट कोई ही पहुचता है; क्योकि राह में ऐसी बहुत सी
विपद-जनक घाटियाँ आती है जिनमे फसकर साधक गिर जाते है | उन घाटियों में ‘कन्चन; और
‘कामिनी’ ये दो घाटियाँ बहुत ही कठिन है, परन्तु इनसे भी कठिन तीसरी घाटी मान-बड़ाई
और ईर्ष्या की है | किसी कवि ने कहा है
कंच्चन तजना सहज है, सहज त्रिया का
नेह |
मान बड़ाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना येह
||
इन तीनो में सबसे कठिन है बड़ाई | इसी को कीर्ति, प्रशंसा,
लोकेष्णा आदि कहते है | शास्त्र में जो तीन प्रकार की त्रष्णा (पुत्रैष्णा, लोकैष्णा और वित्तेष्णा) बताई गयी है | उन तीनो में लोकैष्णा ही सबसे बलवान है | इसी लोकैष्णा के लिए मनुष्य धन, धाम, पुत्र, स्त्री और प्राणों का भी त्याग करने के
लिए तैयार हो जाता है |
जिस मनुष्य ने संसार में मान-बड़ाई
और प्रतिष्ठा का त्याग कर दिया, वही महात्मा है और वही देवता और ऋषियों द्वारा भी
पूजनीय है | साधू और महात्मा तो बहुत लोग कहलाते है किन्तु उनमे मान-बड़ाई और
प्रतिष्ठा का त्याग करने वाला कोई विरला ही होता है | ऐसे महात्माओं की खोज करने
वाले भाइयों को इस विषय का कुछ अनुभव भी होगा |
हम लोग पहले जब किसी किसी अच्छे
पुरुष का नाम सुनते है तो उनमे श्रद्धा होती है पर उनके पास जाने पर जब हम उनमे मान-बड़ाई,
प्रतिष्ठा दिखलाई देती है, तब उन पर हमारी वैसी श्रद्धा नहीं ठहरती जैसी उनके गुण
सुनने के समय हुई थी | यद्यपि अच्छे पुरुषों में किसी प्रकार भी दोषदृष्टि करना
हमारी भूल है, परन्तु स्वभाव दोष से ऐसी वृतियाँ होती हुई प्राय: देखि जाती है और
ऐसा होना बिलकुल निराधार भी नहीं है | क्योकि वास्तव में एक ईश्वर के सिवा
बड़े-से-बड़े गुणवान पुरुषों में भी दोष का कुछ मिश्रण रहता ही है | जहाँ बड़ाई का
दोष आया की झूठ, कपट और दम्भ को स्थान मिल जाता है तो अन्यान्य दोषों के आने को
सुगम मार्ग मिल जाता है | यह कीर्ति रूप दोष देखने में छोटा सा है परन्तु यह केवल महात्माओं को छोड़कर अन्य अच्छे-से-अच्छे पुरुषों में भी सूक्ष्म और गुप्तरूप से रहता
है | यह साधक को साधन पथ से गिरा कर उसका मूलोच्छेदन कर डालता है |....शेष अगले
ब्लॉग में
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!