|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, दशमी, शनिवार, वि० स० २०७०
* धन का प्राप्त होना यद्यपि अपने वश की बात नहीं है, तथापि मनुष्य को शरीरनिर्वाह के लिये कर्तव्यबुद्धिसे न्याययुक्त परिश्रम तो अवश्य करना चाहिये ।
* सुख-दुःख आदि के प्राप्त होने पर उनको भगवान् का मंगल-विधान समझकर हर समय परम संतुष्ट रहना चाहिये ।
* उत्तम काम को शीघ्रातिशीघ्र करने की चेष्टा करें, क्योंकि शरीर का कोई भरोसा नहीं हैं ।
* जिसमे प्राणियों की हिंसा होती हो, ऐसी किसी चीज को व्यवहार में न लावें।
* रेशम और तूष काम में न लें ।
* हिंसायुक्त शहद, मृगचर्म और कस्तूरी काम में न लें ।
* हिंसायुक्त शहद, मृगचर्म और कस्तूरी काम में न लें ।
* जहाँ तक हो, मिलकी बनी चीजें खाने के काममें न ले ।
* ईश्वर की सत्ता पर प्रत्यक्षसे भी बढ़कर विश्वास रखे; क्योंकि ईश्वर पर
जितना प्रबल विश्वास होगा, साधक उतना ही पाप से बचेगा और उसका साधन तीव्र होगा ।
* सदा-सर्वदा ईश्वर पर निर्भर रहना चाहिये । इससे धीरता, वीरता, गंभीरता,
निर्भयता और आत्मबलकी वृद्धि होती है ।
* विशुद्ध ईश्वर-प्रेम एक बहुत गोपनीय परम रहस्य की वस्तु है । उससे बढ़कर
संसार में कोई उत्तम वस्तु नहीं ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!