|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैसाख कृष्ण, त्रयोदशी, मंगलवार,
वि० स० २०७०
‘सात्विक आचरण और भगवान की विशुद्ध
भक्ति से अन्त:करणकी शुद्धि होने पर जब भ्रम मिट जाता है, तभी साधक कृतकृत्य हो
जाता है |’
‘भगवान गुणातीत है, बुरे-भले सभी
गुणों से युक्त है और केवल सद्गुण-संपन्न है |’
‘भारी-से-भारी संकट पड़ने पर भी
विशुद्ध प्रेमभक्ति और भगवत-साक्षात्कार के सिवा अन्य किसी भी संसारिक वस्तु की
कामना, याचना या इच्छा कभी नहीं करनी चाहिये |’
‘भगवान में सच्चा प्रेम होने तथा
भगवान की मनमोहिनी मूर्ती के प्रत्यक्ष दर्शन मिलने में विश्वाश ही मूल कारण है |’
‘निराकार-साकार सब एक ही तत्व है |’
‘वह सर्वग्य, सर्वव्यापी, सर्वगुण,
सर्वसमर्थ, सर्वसाक्षी, सत, चित, आनन्दघन परमात्मा ही अपनी लीला से भक्तो के
उद्धार के लिए भिन्न-भिन्न स्वरूप धारण करके अनेक लीलाएँ करता है |’
‘उस परमात्मा की शरण होना साधक का
कर्तव्य है, शरण होने के बाद तो प्रभु स्वयं सारा भार संभाल लेते है |’
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!