※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 7 मई 2013

अमूल्य वचन


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैसाख कृष्ण, त्रयोदशी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 

‘सात्विक आचरण और भगवान की विशुद्ध भक्ति से अन्त:करणकी शुद्धि होने पर जब भ्रम मिट जाता है, तभी साधक कृतकृत्य हो जाता है |’

 
‘भगवान गुणातीत है, बुरे-भले सभी गुणों से युक्त है और केवल सद्गुण-संपन्न है |’

 
‘भगवान चाहे जैसे, चाहे जब, चाहे जहाँ, चाहे जिस रूप में प्रगट हो सकते है |’

 
‘चराचर ब्रह्माण्ड ईश्वर है, उसकी सेवा ईश्वर की सेवा है | संसार को सुख पहुचाना परमात्मा को सुख पहुचाना है |’

 
‘निष्काम भाव से प्रेमपूर्वक विधिसहित जप करने वाला सदाहक बहुत शीघ्र अच्छा लाभ उठा सकता है |’

 
‘भारी-से-भारी संकट पड़ने पर भी विशुद्ध प्रेमभक्ति और भगवत-साक्षात्कार के सिवा अन्य किसी भी संसारिक वस्तु की कामना, याचना या इच्छा कभी नहीं करनी चाहिये |’

 
‘भगवान में सच्चा प्रेम होने तथा भगवान की मनमोहिनी मूर्ती के प्रत्यक्ष दर्शन मिलने में विश्वाश ही मूल कारण है |’

 
‘निराकार-साकार  सब एक ही तत्व है |’

 
‘वह सर्वग्य, सर्वव्यापी, सर्वगुण, सर्वसमर्थ, सर्वसाक्षी, सत, चित, आनन्दघन परमात्मा ही अपनी लीला से भक्तो के उद्धार के लिए भिन्न-भिन्न स्वरूप धारण करके अनेक लीलाएँ करता है |’
 

‘उस परमात्मा की शरण होना साधक का कर्तव्य है, शरण होने के बाद तो प्रभु स्वयं सारा भार संभाल लेते है |’      

 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!