※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 13 जून 2013

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है |

                                     || श्रीहरिः ||

                          आज की शुभतिथि-पंचांग

          ज्येष्ठ शुक्ल,चतुर्थी,  गुरूवार, वि० स० २०७०


 गत ब्लॉग से आगे.... धर्मग्रंथ और संस्कृत भाषा की रक्षा होने से ही सनातन धर्म की रक्षा होगी; परन्तु इसके लिए ब्राह्मण के ब्राह्मणत्व की रक्षा की रक्षा की सर्वप्रथम आवश्यकता है | आजकल जो ब्राह्मण जाति ब्रह्मनत्व की और से उदासीन होती जा रही है और क्रमशः वर्णअंतर के कर्मो को ग्रहण करती जा रही है,यह बड़े खेद की बात है | परन्तु केवल खेद प्रगट करने से काम नहीं चलेगा | हमे वह कारण खोजने चाहिये जिससे ऐसा हो रहा है | इसमें कई कारण है | जैसे –
(१) पाश्चात्य शिक्षा और सभ्यता के प्रभाव से धर्म के प्रति अनास्था |
(२) धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष के लिए किये जाने वाले हमारे प्रत्येक कर्म का सम्बंध धर्म से है और धार्मिक कार्य में ब्राह्मण का संयोग सर्वथा आवश्यक है, इस सिद्धांत को भूल जाना |
(३) ज्ञानमार्गी और भक्तिमार्गी पुरुषो के द्वारा जो वस्तुत: ज्ञान और भक्ति के तत्व को नहीं जानते, ज्ञान और भक्ति के नाम पर कर्मकांड की उपेक्षा होना, और इसी प्रकार निष्काम कर्म के तत्व की बात को कहने वाले लोगो द्वारा सकाम कर्म की उपेक्षा करने के भाव से प्रकारान्तर से कर्म कांड का विरोधी हो जाना |
(४) संस्कृतग्य ब्राहमण का सम्मान न होना | शास्त्रीय कर्मकांड की अनावास्यकता मान लेने से ब्राह्मण का अनावश्यक समज्हा जाना |
(५) कर्मकाण्ड के त्याग और राज्याश्रय न होने से ब्राहमण की अजीविका में कस्ट होना और उसके परिवार-पालन में बाधा पहुचना |
(६) त्याग का आदर्श भूल जाने से ब्राह्मणों की भी भोग में प्रवर्ती होना  और भोगो के लिए अधिक धन की अवश्यकता का अनुभव होना |
(७)  शास्त्रों में श्रधा का घट जाना |
इस प्रकार के अनेको कारणों से आज ब्राह्मण जाती ब्राह्मणत्व से विमुख होती जा रही है,जो वर्णाश्रम-धर्म के लिए बहुत ही चिंता की बात है |
यह स्मरण रखना चाहिये की ब्राह्मणत्व की रक्षा ब्राह्मण के द्वारा ही होगी | क्षत्रिय, वैश्य और सूद्र अपने सदाचार,सद्गुण तथा ज्ञान आदि के प्रभाव से भगवन को प्राप्त को कर सकते है; परन्तु वे ब्राह्मण नहीं बन सकते | ब्राह्मण तो वही है जो जन्म से ही ब्राह्मण है और उसी को वेदादि  पढ़ाने का अधिकार है |



शेष अगले ब्लॉग में.......

—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक, कोड ६८३ से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत 

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!