※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 16 जून 2013

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है |

                                 || श्रीहरिः ||
                      आज की शुभतिथि-पंचांग
          ज्येष्ठ शुक्ल,सप्तमी, रविवार, वि० स० २०७०

 गत ब्लॉग से आगे....उपयुक्त  वृतियो में ब्राह्मण के लिये उञ्छ और शील ये दो  वृतिया सबसे उत्तम मानी गाई है | वेद पढाना, यज्ञ करवा कर दक्षिणा ग्रहण करना, तथा बिना याचना के दान लेना भी बहुत उत्तम अमृत के तुल्य कहा गया है | एवं भिक्षावृति  भी उनके लिये धर्मसंगत है | ब्राह्मण धर्म का पालन करने वाले ब्राह्मणों के लिये अधिक-से-अधिक साल भर के अन्न-संग्रह करने की आज्ञा दी गयी है | जो एक मास से अधिक का अन्न-संग्रह नहीं करता  उसको उससे श्रेस्ठ माना है, उससे श्रेस्ठ  तीन दिन के लिये अन्न-संग्रह करने वाले को, और उससे भी श्रेस्ठ केवल एक दिन का अन्न-संग्रह  करने वाले को बताया गया है |
आपतिकाल में क्षत्रिय या वैश्य की वृति से भी ब्राह्मण अपना जीविका चलावे तो वह निंदनीय नहीं है | धर्मशास्त्र का यही आदेश है | 


विडालवृति और वकवृति ये दो वृतियाँ वर्जित है, इन दो वृतियो को और श्रवृतियो को छोड़कर उपयुक्त किसी भी वृति से जीविका चलाने वाला ब्राह्मण पूजनीय है और सेवनीय है | ब्राह्मणों की जीवननिर्वाह वृति इतनी कठिन है,यही नहीं है | ब्राह्मण के जीवन का उद्देश्य और उसके जीवन की का उद्देश्य और उसके जीवन की स्थिति कितनी कठोर, तपोमयी और त्यागपूर्ण है | यह भी देखिये !

‘उन ब्राह्मणों ने इस लोक में अति सुन्दर और पुरातन मेरी वेद रूपा मूर्ति को अध्य्यानादी द्वारा धारण किया है | उन्ही में परम पवित्र सत्व गुण, शम, दम, सत्य, अनुग्रह, तप, सहनशीलता और अनुभव आदि मेरा गुण विराजमान है | वे ब्राह्मण द्वार-द्वार पर भिक्षा मांगने वाले नहीं होते, साधारण मनुष्य से कुछ माँगना तो दूर रहा, देखो में अनंत हूँ और सर्वोत्तम परमेश्वर हूँ | एवं स्वर्ग और मोक्ष का स्वामी हूँ | किन्तु मुझसे भी कुछ नहीं चाहते ( उनके आगे राज्य आदि वस्तुए केवल तुच्छातीतुच्छ पदार्थ ही नहीं, विषतुल्य है | ) वे अकिंचन (सर्त्यागी) महात्मा विप्रगण मेरी भक्ति में ही संतुस्ट रहते है |’ (श्रीमदभागवत ५ | ५ | २४-२५)
‘ब्राह्मण की देह विषय सुख के लिये कदापि नहीं है, वह तो सदा-सर्वदा तपस्या का क्लेश सहने, धर्म का पालन करने और अंत में मुक्ति के लिये ही उत्पन्न होती है |’(वृहदधर्म पुराण,उतर खंड २ | ४४)


इसी प्रकार भागवत में कहा है –
‘ब्राह्मण का यह सरीर क्षुद्र विषय भोगो के लिये नहीं है, यह तो जीवन भर कठिन तपस्या और अंत में आत्यंतिक सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति के लिये है |’ (श्रीमदभागवत ११|१७|४२)
इससे पता चलता है की ब्राह्मण का जीवन कितना महान तप से पूर्ण है | वह अपने जीवन को साधनमय रखता है |


शेष अगले ब्लॉग में.......

—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक, कोड ६८३ से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!