※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 18 जून 2013

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है |

                                || श्रीहरिः ||
                    आज की शुभतिथि-पंचांग
       ज्येष्ठ शुक्ल,नवमी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 गत ब्लॉग से आगे....स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कहते है-
‘ब्राह्मण की पूजा करने से आयु, कीर्ति, यश और बल बढ़ता है | सभी लोग और लोकेश्र्वरगण ब्राह्मणों की पूजा करते है | धर्म, अर्थ, काम इस त्रिवर्ग को और मोक्ष को प्राप्त करने में तथा यश ,लक्ष्मी की प्राप्ति और रोग शांति में और देवता एवं पितरो की पूजा में ब्राह्मणों को संतुस्ट करना चाहिये |’ (महा० अनु० १६९|९-१०)

‘ब्राह्मणों को दी हुई अक्षय निधि को शत्रु अथवा चोर नहीं हर सकते और न वह नष्ट होती है, इसलिए राजा को ब्राह्मणों में इस अनन्त फलदायक अक्षय निधि को स्ताथापित करना चाहिये अर्थात ब्राह्मणों को धन-धान्यादी देना चाहिये | अग्नि में घृत की आहुति देने की अपेक्षा ब्राह्मणों के मुख में होमा हुआ अर्थात उन्हें भोजन देने का फल अधिक होता है; क्योकि न वह कभी झरता है, न सूखता है और न नष्ट होता है |’ (मनु० ७| ८३-८४)

इतना ही नहीं, राजा के लिये तो मनु महाराज आज्ञा करते है
‘जिस राजा के देश में वेद पाठी  (श्रोत्रिय ब्राह्मण) भूख से दुखी होता है उस राजा का देश भी दुर्भिक्ष से पीड़ित हो शीघ्र नष्ट हो जाता है| इसलिये राजा को चाहिये की वह श्रोत्रिय ब्राह्मण का शास्त्र ज्ञान और आचरण जान कर उसके लिये धर्मानुकूल जीविका नियत कर दे और जैसे पिता अपने खास पुत्र की रक्षा करता है वैसे ही इस वेद पाठी की सब भांति रक्षा करे | राजा से रक्षित होकर (वेद पाठी) जो नित्य धर्मानुस्ठान करता है उससे राजा के राज्य, धन और आयु की वृद्धि होती है |’ (मनु० ७|१३४-१३६)

यहाँ तक कहा गया है की –
‘जिन घरो में भोजन करने के लिये आये हुए ब्राह्मणों के चरणों की धोवन से कीचड़ नहीं होती, जिनमे वेद-शास्त्रो की ध्वनि नहीं गूँजती, जहा हवन सम्बन्धी स्वाहा और श्राध  सम्बन्धी स्वधा की ध्वनि नहीं होती वे घर श्मशान के समान है|’

‘ब्राह्मण दस वर्ष और राजा सौ वर्ष का हो तो उनको पिता-पुत्र के समान जानना चाहिये,अर्थात उन दोनों में छोटी उम्र के ब्राह्मणों के प्रति राजा को पिता के सामान मान देना चाहिये |’ (मनु० २|१३५)

ब्राह्मण सद्गुण और सदाचार संपन्न होने के साथ ही विद्वान हो तब तोह कहना ही क्या है, विद्वान् न हो तो भी वह सर्वात पूजनीय है |

‘अग्नि वेद मंत्रो से प्रकट की हुई हो या दुसरे प्रकार से, वह जैसे परम देवता है वैसे ही विद्वान हो या अविद्यवान, ब्राह्मण भी परम देवता है; अर्थात वह सभी स्थितियो में पूज्य है |’ (मनु० ९|३१७)


शेष अगले ब्लॉग में.......

—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक, कोड ६८३ से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!