※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 12 नवंबर 2011

अंत समयमेँ भगवानका नाम उच्चारणमात्रसे कल्याण हो जाना बताया जाता है।

  प्रश्न-   इसमेँ ऐसी क्या बात है जो एक नामसे ही कल्याण है। 
उत्तर-  भगवानका यह कहना है कि अंत समय मेँ मेरा स्मरण होना ही कठिन है, यदि चेत भी रहा तो इतनी वेदना होती है कि नाम लेना कठिन हो जाता है । दूसरी बात यह है कि यह उसका अंतिम समय है । एक राजा भी यदि किसीको फाँसीकी सजा देता है तो उसको कहता है कि फाँसी तो तुमको होगी ही; परंतु तेरी जो इच्छा हो वह माँग लो । प्रभु तो दयालु हैँ, प्रभु जीवको यह मौका देते हैँ कि इस समय मनुष्य यदि एक बार भी कह दे कि प्रभु मैँ तेरा हुँ तो प्रभु उसे नहीँ त्यागते । दया इतनी है कि स्मरणमात्रसे ही कल्याण हो जाता है । प्रभु न्यायकारी भी हैँ और दयालु भी हैँ । दयाकी भी पराकाष्ठा है । जिस प्रकार कैमरेके सामने जैसी चीज होती है उसी प्रकार उसका चित्र आ जाता है, उसी प्रकार अंत समयमेँ जैसा हाव-भाव होगा, वैसा ही चित्र बन जायगा । अंतिम समयमेँ जिसका भी चिँतन करोगे वही बन जाओगे । गधेका चिँतन करोगे तो गधा बन जाओगे, भगवानका चिँतन करोगे तो भगवानको प्राप्त हो जाओगे ।

अंतकालकी स्मृतिमेँ कैसी विलक्षणता भरी हुई है । इसमेँ प्रभुकी दयालुता, समता तथा न्यायशीलता भरी हुई है । प्रभु विचार करते हैँ कि इस बेचारेका अंत हो रहा है, न जाने अब फिर कब बारी आयेगी इसलिए प्रभुने ऐसा कानून बना दिया जिससे एक क्षणमेँ उद्धार हो जाता है । अंत समय मेँ एक बार स्मरण किया कि काम खत्म ।
                  लगन लगन सब कोइ कहे लगन कहावे सोय।
                  नारायण जा लगनमेँ तन  मन दीजे खोय  ॥
भगवानके लिए सबकुछ त्यागनेको तैयार रहे । प्रभु-प्रेमके सामने किसीको कुछ न समझे । परमात्माकी प्राप्तिमेँ विलम्ब हो रहा है, यह अपनी ही कमी है । अपने विश्वासकी कमीके कारण ही विलम्ब हो रहा है, नहीँ तो भगवान तो सर्वत्र उपस्थित हैँ ही । एक स्त्रीने गलेमेँ हार पहन रखा है, पहन कर भूल गयी और कहने लगी कि मेरा हार खो गया, वही हाल हमारा हो रहा है ।