।। श्रीहरि: ।।
प्रश्न- श्रद्धा कैसे हो ?
उत्तर- श्रद्धा होने का पहला उपाय भगवान् से प्रार्थना करना तथा दूसरा उपाय आज्ञापालन है। शास्त्र के आज्ञा पालन से शास्त्र में श्रद्धा होती है। बालक को पहले बिना इच्छा ही विद्यालय भेजते हैं, फिर उसकी रुचि हो जाती है। बाद में इतनी रुचि हो जाती है कि घरवालों के रोकने पर भी नहीं मानता, इसी प्रकार कोई भी काम हो, करने से श्रद्धा होती है। इसी प्रकार भजन करते-करते भजन में,महात्मा की आज्ञापालन करते-करते महात्मा में और सत्संग करते-करते सत्संग में श्रद्धा हो जाती है।
कर्तव्य-पालन करना ही अपना उद्देश्य बना ले, उसके फल की ओर नहीं देखे, चलता रहे। अपना जो ध्येय बना ले, कटिबद्ध होकर तत्परता से उसका पालन करे। अपनी ऊँची स्थिति हो तो उसकी ओर भी खयाल नहीं करे, स्वामी यदि नरक में भी डाल दें तो वह भी उत्तम है, उसमें भी अपनी प्रसन्नता ही रहे। श्रद्धा-प्रेम बढ़ने के लिये भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिये। यह भी कामना ही है, परन्तु परमात्मा का प्रभाव न जानने का कारण ही प्रार्थना की जाती है। परमात्मा से कहेंगे तो जल्दी होगा, नहीं कहेंगे तो नहीं होगा-ऐसी बात नहीं है। कर्तव्य पालन करने से प्रभु स्वयं ही करेंगे, प्रभु सब अच्छा ही करेंगे। अच्छा ही करते हैं इसकी ओर भी लक्ष्य नहीं करना चाहिये। हमें तो यही देखना है कि हमारा काम प्रभु की सम्मति के अनुसार हो रहा है,उसी पर भार रखे। उससे भी ऊँची बात यह है कि मनमेँ स्वार्थ की बात का प्रकरण ही नहीं लाये।
प्रश्न- श्रद्धा कैसे हो ?
उत्तर- श्रद्धा होने का पहला उपाय भगवान् से प्रार्थना करना तथा दूसरा उपाय आज्ञापालन है। शास्त्र के आज्ञा पालन से शास्त्र में श्रद्धा होती है। बालक को पहले बिना इच्छा ही विद्यालय भेजते हैं, फिर उसकी रुचि हो जाती है। बाद में इतनी रुचि हो जाती है कि घरवालों के रोकने पर भी नहीं मानता, इसी प्रकार कोई भी काम हो, करने से श्रद्धा होती है। इसी प्रकार भजन करते-करते भजन में,महात्मा की आज्ञापालन करते-करते महात्मा में और सत्संग करते-करते सत्संग में श्रद्धा हो जाती है।
कर्तव्य-पालन करना ही अपना उद्देश्य बना ले, उसके फल की ओर नहीं देखे, चलता रहे। अपना जो ध्येय बना ले, कटिबद्ध होकर तत्परता से उसका पालन करे। अपनी ऊँची स्थिति हो तो उसकी ओर भी खयाल नहीं करे, स्वामी यदि नरक में भी डाल दें तो वह भी उत्तम है, उसमें भी अपनी प्रसन्नता ही रहे। श्रद्धा-प्रेम बढ़ने के लिये भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिये। यह भी कामना ही है, परन्तु परमात्मा का प्रभाव न जानने का कारण ही प्रार्थना की जाती है। परमात्मा से कहेंगे तो जल्दी होगा, नहीं कहेंगे तो नहीं होगा-ऐसी बात नहीं है। कर्तव्य पालन करने से प्रभु स्वयं ही करेंगे, प्रभु सब अच्छा ही करेंगे। अच्छा ही करते हैं इसकी ओर भी लक्ष्य नहीं करना चाहिये। हमें तो यही देखना है कि हमारा काम प्रभु की सम्मति के अनुसार हो रहा है,उसी पर भार रखे। उससे भी ऊँची बात यह है कि मनमेँ स्वार्थ की बात का प्रकरण ही नहीं लाये।