※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 1 जुलाई 2012

भगवान के चिंतन का महत्त्व - ३

प्रवचन नंबर १८.

लोग संध्या गायत्री जप करते हैं और मन कहीं और घूमता है, इसलिए आपको परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो रही है | सूर्य साक्षात परमात्मा है | परमात्मा के दर्शनसे जो हमें शान्ति, आनन्द हो उसी आनन्द का अनुभव हमें सूर्य के दर्शन से हो | करना कुछ नहीं है बस भाव बदलना है |

घर में पारस पड़ा है और उसे आपने पत्थर समझ रखा है, इसलिए भूखे मरते हैं | किसी महात्मा ने पारस पत्थर देखा और उससे कहा की तू सारे संसार को धनी बना सकता है | वे महात्मा घर में गए और जाकर देखा की एक पत्थर पड़ा है, पूछा यह क्या है ? उसने कहा – इससे मैं चटनी बांटता हूँ, यह पत्थर है | महात्मा ने कहा – हम इसे पत्थर नहीं मानते हैं, यह तो पारस है, तुम्हारे घर में लोहा हो तो लाओ | वह लाता है, महात्मा ने उस लोहे को उस पत्थर से छुआया, तो वह लोहा सोना हो गया | अब क्या हम उससे चटनी बाटेंगे ? इतने दिन दरिद्रता भोग रहे थे, वह मूर्खता ही तो थी | वही बात हमारे साथ है | हमारे भीतर परमात्मा है, किन्तु हम उन्हें मानते नहीं हैं | कोई महात्मा आकार बता दे तो काम हो जाए | 

भगवान गीताजी (१५/१५) में कहते हैं – मैं ही सब प्राणियों के ह्रदयमें अंतर्यामी रूपसे स्थित हूँ तथा मेरे से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ तथा वेदान्तका कर्ता और वेदोंको जाननेवाला भी मैं ही हूँ |

आपके हृदय में ज्ञान है, यह क्या है ? परमात्मा का स्वरुप है | हमें नियम-पूर्वक बड़े आदर से भजन-ध्यान करना चाहिए | लाख काम छोडकर हमें यह काम करना चाहिए | भगवान के भक्त कभी हँसते हैं, कभी रोते हैं, कभी नाचते हैं | भगवानकी दया की तरफ और उनके गुण-प्रभाव की तरफ जब भक्त की दृष्टि जाती है तब हँसते हैं | जब अपने पापों की तरफ वृत्ति चली जाती है तो रोते हैं | और वे समझते हैं – प्रभो ! मैं तो बड़ा पापी हूँ, क्या मेरा भी कल्याण हो सकता है ? भगवान के यहाँ तो सभीकी दाल गलती है| भगवान केवल प्रेमियों का ही उद्धार करें, यह बात नहीं है | वे तो दीनबंधु हैं, पतित पावन है|

जो ऐसा समझता है – भगवान न्यायकारी हैं, दयालु नहीं है उसके लिए भगवान न्यायकारी ही हैं | जो समझता है की न्यायकारी तो है ही साथ में दयालु भी हैं, उसका काम जल्दी ही हो जाता है | हमें समझना चाहिए की भगवान बड़े ही दयालु हैं फिर चिंता, शोक, भय सब चले जाते हैं | हमें भगवान के नाम का कीर्तन करना चाहिए | कभी-कभी भगवान के गुण, प्रभाव, रहस्य को समझकर प्रफुल्लित होना चाहिए | भगवान की दया का दर्शन कर प्रसन्न होना चाहिए, समझना चाहिए हमारे ऊपर भगवानकी कैसी अपार दया है !

जापर कृपा राम की होई | तापर कृपा करइ सब कोई ||
भगवान की जिसपर कृपा होती है उसपर सबकी कृपा होती है |

हमें जो भी सुख-दुःख प्राप्त हो रहा है या होता है उसमें भगवानकी दया भरी है | इसलिए हर समय प्रभु की दया का दर्शन करें | जो कुछ भी अपनी मर्जी से होता वह भगवान का ही प्रसाद है, पुरस्कार है | जो भगवानके प्रेम में मस्त रहता है वह सारे ऐश्वर्य को लात मार देता है | हमें तो यह लक्ष्य रखना चाहिए की हम ऐसे बनें, की हमारे दर्शन, भाषण से लोगों का कल्याण हो जाए | हमें ऐसा ही भाव रखना चाहिए | अपनी आत्मा का कल्याण क्या बड़ी बात है ! हम तो अपना यही मत रखें कि सबका कल्याण हो | हम लोग कितनी बार इंद्र हो गए, किन्तु अभीतक परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुयी | इसलिए सब बात को छोडकर भगवान को याद करना चाहिए | यह सब साधनों का मूल है | यह नहीं हो तो भगवान के नाम की रटन ही करो |

राम नाम जपते रहो, जब लगी घटमें प्राण |
कबहुंक दीनदयाल के, भनक परेगी कान ||

बस रात-दिन दूसरा काम ही क्या करना है | जब तक प्राण है तब तक ये ही काम करना है | 

काल भजनता आज भज, आज भजनता अब |
पलमें प्रलय होगी, बहुरि भजेगा कब ||

इन सब बातों का ख्याल करके भगवानके नाम की रटन लगानी चाहिए | वाणीसे भगवानके नाम का जप, मनसे ध्यान, बुद्धि से उस परमात्मा का निश्चय करें | जब आपको निश्चय हो जाए की प्रभु सब जगह है तो आपसे पाप नहीं होगा | जैसे गवर्नमेंट की यहाँ सत्ता है तो हम उसके विरुद्ध कुछ बोल नहीं सकते | गवर्नमेंट की तो वह शक्ति भी नहीं है, परन्तु परमात्मा तो सब जगह हैं और सर्व समर्थ हैं | इसलिए हमें हर समय भगवान् का चिंतन करना चाहिए | सर्वत्र, सर्वदा भगवानको देखना चाहिए | यह सार बात आपको बतलाई |

 
व्याख्यान सुनते समय गौर से सुनना चाहिए और यह समझना चाहिए की अपनेको व्याख्यान की बातें काम में लानी है; और इस उद्देश्य से सुनना चाहिए की हमें इसका प्रचार करना चाहिए | सुनकर प्रचार करें तो फिर देखना कितना लाभ होता है |

घरपर जाकर रोज पुस्तक पढ़ें | एक आदमी पढ़ें और सब सुने | शहर में जो अपने मित्र हो उनमें प्रचार करना चाहिए | स्कूल, लाइब्रेरियों में भी प्रचार करना चाहिए | ऐसा करनेपर थोड़े समयमें ही आपकी उन्नति हो सकती है | ऐसा मौका आपको बार-बार नहीं मिलेगा | प्रथम तो मनुष्य शरीर नहीं मिलेगा क्योंकि असंख्य जीव हैं, भगवान उन्हें भी मनुष्य बनने का मौका देंगे | मनुष्य शरीर बहुत ही दुर्लभ है और उसमें भी दुर्लभ है सत्-पुरुषों का संग | उनका मिलना ही कठिन है | मिल गए तो पहचाने नहीं जा सकते|

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....
[पुस्तक 'भगवन्नाम  महिमा एवं परम सेवा का महत्त्व' श्री जयदयाल जी गोयन्दका ] शेष अगले ब्लॉग में .....