※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 2 जुलाई 2012

भगवान के चिंतन का महत्त्व - ४

प्रवचन नंबर १८.


मरेंगे मर जायेंगे, कोई ना लेगा नाम |
उजड़ जाय बसाएंगे, छोड़ बसंत गाम ||
आप जंगलमें वास करोगे, आपको शमसान में ले जाकर लोग जलाकर ख़ाक कर देंगे | 

हाड जले ज्यूँ लाकडी केस जले ज्यूँ घास |
सब जग जलता देखि करी भया कबीर उदास ||
जैसे लकडियाँ जलती है ना ऐसे ही तुम्हारी हड्डियां जलेंगी और जैसे घास जलती है वैसे ही केश जलेंगे|

चलती चाकी देखिके, दीया कबीरा रोय |
दो पाटन के बीचमें, साबित रहा ना कोय ||

कालकी की चक्की चल रही है और सबका नंबर लग रहा है | आपका भी नंबर है, समय तो बीत रहा है, अब समय कहाँ है ? आयु की तरफ देखें तो समय का क्या विश्वास है ? अब कुछ नगारा बजता है, चलने की फिकर करो बाबा ! जिस प्रकार अब यहाँ से गाँव चलने की तयारी कर रहे हैं, उसी प्रकार वहाँ की भी तयारी रखनी चाहिए | टिकट कटाकर तैयार रहना चाहिए | इसका मतलब क्या है ? भगवानको प्राप्त कर लेना |

भगवान यह शरीर देकर कहते हैं की मुझे भज | लाख रूपया खर्च करने पर भी आपको १ सेकण्ड ज्यादा नहीं मिलेगा | आपके लाख काम पड़े हैं, पड़े ही रह जायेंगे | यमके दूत आवेंगे तो वे रुकेंगे नहीं| सिपाही लोग वारंट लेकर आते हैं, वे घूस लेकर समय दे सकते हैं किन्तु यम के यहाँ घूस नहीं चलती | जब ऐसी स्तिथि है तो हमें सावधान रहना चाहिए | इस घोर कलिकाल में भगवानकी भक्ति, भगवान की स्मृति के सामान कोई उपाय नहीं है | इसलिए हर वक्त समझें की प्रभु हमारे साथ ही हैं | या निराकार रूपसे सब जगह हैं | जर्रे-जर्रे में हैं और वे प्रेमसे प्रकट होते हैं | प्रेमका सरल उपाय यही है की परमात्मा के नामका जप, स्वरुप का ध्यान और अच्छे पुरुषों का संग, तीनों ही हो तब तो बात ही क्या है | एक एक से भी काम हो सकता है |

हमें समझ लेना चाहिए की भगवानने अर्जुन को निमित्त बनाकर हम सबको गीताजी का उपदेश सुनाया है| गीताजी का यही सार है कि  सबसे हेतु रहित प्रेम करना | तुलसी दासजी कहते हैं की हेतु रहित प्रेम करनेवाले दो ही हैं – एक भगवान, दुसरे भगवान के प्रेमी भक्त |

स्वारथ मीत सकल जग माहीं | सपनेहूँ प्रभु परमारथ नाहीं ||
सुर नर मुनि सब के यह रीती | स्वारथ लागी करहिं सब प्रीति||
अर्थ जगतमें बाकी सबही स्वार्थ के मित्र हैं | हे प्रभो ! उनमें सपनेमें भी परमार्थ का भाव नहीं है| देवता, मनुष्य और मुनियो की सबकी यही रीति है की स्वार्थ के लिए ही सब प्रीती करते हैं |  

हेतु रहित जग उपकारी | तुम तुम्हार सेवक असुरारी ||
अर्थ – हे असुरों के शत्रु ! जगतमें नि:स्वार्थ उपकार करनेवाले तो दो ही हैं – एक आप और आपके सेवक|

यह सब सोचकर हमें सबके साथ स्वार्थ रहित प्रेम करना चाहिए | फिर आप दमक उठेंगे | जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री पति की सेवा करके भगवानको प्राप्त हो जाती है, इसी प्रकार हम जनता-जनार्दन की सेवा करके परमात्मा को प्राप्त हो जायेंगे | कैसा ही मूर्ख -से- मूर्ख हो या पापी-से-पापी हो, सबको प्रभुको प्राप्ति हो सकती है | यदि हमें गीताजी पर और महात्माओं पर विश्वास है तो हर समय भगवान का चिंतन करना चाहिए | कैसा ही कोई पापी हो, आज ही उसका कल्याण हो सकता है | बस एक ही बात है कि आजसे जब तक वो रहे तबतक भगवानको याद रखे | 

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....
[पुस्तक 'भगवन्नाम महिमा एवं परम सेवा का महत्त्व' श्री जयदयाल जी गोयन्दका ] 

शेष अगले ब्लॉग में ....