※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

जीवन-सुधार की बातें



पिछला शेष आगे...............

     सबसे बढ़कर एक नियम आपको बताया जाता है उसका यदि पालन कर ले तो सब काम सिद्ध हो सकता है !

     एक और तो सारा संसार और एक और भगवान है ! यह नियम कर लेना चाहीये की संसार का त्याग कर देना, किन्तु भगवान का त्याग नहीं करना, बुद्धिसे, मन से, वाणी से भगवान् को छोड़ना ही नहीं !

      बुद्धि से पकड़ना कैसे ? भगवान् सब जगह मौजूद है ! इस प्रकार बुद्धि से निश्चय करना बुद्धि से पकड़ना है ! निश्चय के अनुसार ध्यान करना मन से पकड़ना है ! मन से पकड़ना कैसे है ?

       आप राम के उपासक हो तो बालकाण्ड से लेकर अन्त तक भगवान् की लीला रोज देख जाओ ! कृष्ण के उपासक हो तो कृष्ण की लीला देखो ! चरित्र के साथ गुण, प्रभाव है ही, स्वरुप भी है ही ! बड़ा सरल काम है, लीला देखते रहो ! अभी तो तुम अपनी लीला देखते हो,उसे छोड़ो, प्रभु की लीला देखो यह मनसे पकड़ना है !

        वाणी से पकड़ना है उनके नाम और गुणोंका उच्चारण !

        श्वाससे पकड़ना है उनके नामको जपते रहना, कानों से पकड़ना है उनके गुणों को सुनाता ही रहे ! तुम्हारे पास पकड़ने के कितने द्वार है ? बारह द्वार है, दस इन्द्रियां दो मन बुद्धि ! इनसे भगवान् को बांधो ! बारह साधनों के रहते हुये भी तुम उन्हें नहीं बांध रहे हो यह तुम्हारी मूर्खता है ! भगवान् तुम्हारे पंजे में आ गये ! तुम पशु पक्षियों को बांध रहे हो, इनको बांधोगे तो तुम पशु पक्षी ही बनोगे ! यह तुम्हारा संसार है इसे घटाओ !वेदान्तियो ने संसार को हटा कर सच्चिदानंद ब्रह्मा की स्थापना की, यह भी ठीक है ! तुम्हारे लिये तो
बड़ा सरल है ! सूरदासजी ने तो भगवान् को चैलैंज दे दिया -

        बाँह छुड़ाये जात हो निबल जानि में मोहि !
        हिरदे से  जब  जाहुगे  पुरुष  बदौंगो तोहि !!

         भगवान् को ध्यान से पकड़ो, ध्यान से नहीं पकड़ो तो बुद्धि के निश्चय से पकड़ो, बुद्धि से नहीं पकड़ सको तो श्वास से पकड़ो ! श्वास के साथ नाम को जोड़ दो ! श्वास से नहीं पकड़ सको तो वाणी से पकड़ो ! नेत्रों से मूर्ति का दर्शन करो ! नेत्र, वाणी, बुद्धि से भी नहीं पकड़ सको तो उनके स्वरुप की पूजा करो ! यदि यह भी नहीं कर सको तो कुछ तो करो, और कुछ नहीं तो हर समय नमस्कार ही करते रहो, नमस्कार करते हुये जाओगे तो भी बेड़ा पार है !

          नमस्कार करोगे तो स्मृति तो होगी ही कि किसको नमस्कार करते हैं ! बस बेड़ा पार है-------
         अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम !
          य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: !!
                                                (गीता ८ / ५ )
         जो पुरुष अन्तकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुवा शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरुप को प्राप्त होता है - इसमे कुछ भी संशय नहीं है !

          मरने के समय जो इस प्रकार हाथ जोड़ता हुवा जाता है समझना चाहीये उसके भीतर भगवान् की स्मृति है ! किसी भी तरह भगवान् को नहीं छोड़ना चाहीये और एक मदद की बात इसमे है ! भगवान् कहते हैं जो मुझे नहीं छोड़ता मैं उसे नहीं छोड़ता !
           यो मां  पश्यति  सर्वत्र सर्व च मयि पश्यति !
           तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति !!
                                             (गीता ६ / ३० )

          जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों मे सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों  को मुझ वासुदेव के  अन्तर्गत देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता !

          धर्म की यदि प्रतिज्ञा है, मरने के बाद भी धर्म साथ मे रहता है ! महात्मा पुरुष भी छोड़ना नहीं जानते, पकड़ना जानते हैं ! ईश्वर, धर्म, महात्मा किसी को नहीं छोड़ते, इनको पकड़ लिया तो पकड़ लिया, छोड़ना नहीं, यह नियम निभाना चाहीये !
          ईश्वर को पकड़ लिया है ! यहाँ आये हैं तो पकड़ा ही है, इसे छोड़ें नहीं ! नियम ले लो की अपनी शक्ति भर नहीं छोड़ेंगे ! कमी जो रहेगी उसके लिये प्रार्थना करें, भगवान् कमी की पूर्ति करते हैं !
         अनन्याश्चिन्तयन्तो  मां ये जना: पर्युपासते !
          तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यह्म !!
                                               (गीता ९ / २२ )
         जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करनेवाले पुरुषों का योगक्षेम मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ !

           कमी रहेगी उसकी वे पूर्ति कर देंगे, उसके लिये कोई चिन्ता की बात नहीं है ! भगवान् गीता में कहते हैं एक को हटाओ, एक को बैठाओ ! अभिप्राय क्या है ? संसार को हटाओ भगवान् को बैठाओ ! असली बात इतनी ही है !

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक भगवत्प्राप्ति कैसे हो ? श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड १७४७,गीता प्रेस गोरखपुर ]शेष अगले ब्लॉग में