※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 15 अगस्त 2012

क्षण में स्थिति कैसे बदले ?


            महात्मा और ईश्वर की कृपा से शीघ्र लाभ हो जाता है ! उत्तंक पर ईश्वर की कृपा हुई ! भगवान् ने स्वयं उसे समझाया, अपना प्रभाव दिखलाया ! श्रद्धा तो थी नहीं---भगवान् ने कहा तब भी नहीं माना, कहा-विश्वरूप दिखलाओ नहीं तो शाप दूँगा ! भगवान् ने विश्वरूप दिखला दिया ! श्रद्धा हो गयी ! सब काम हो गया ! श्रद्धा नहीं थी पर धार्मिक पुरुष था, तपस्वी था, पापी नहीं था !

             लौकिक उदाहरणों में कल रामकृष्ण परमहंस की बात बतलायी थी ! नास्तिक को एकदम विवेकानन्द बना दिया ! कोई श्रद्धा नहीं थी ! गौरांग महाप्रभु ने बहुतों को ऐसा बना दिया ! जगाई-मधाई, धोबी आदि को भगवान् का भक्त बना दिया ! वेश्या हरिदास को बिगाड़ने आयी थी और बन गयी भक्त, ऐसे उदाहरण तो बहुत आते हैं ! श्रद्धा न हो तब भी तुरन्त विश्वास और तुरन्त प्राप्ति हो गयी ! भगवान् की विशेष कृपा के बहुत उदाहरण आते हैं !

               अहंकार के उदाहरण आते हैं ! केनोपनिषद् का यक्षोपाख्यान- वायु, अग्नि, इंद्रने  अभिमान किया ! इन्द्रको भगवान् ने उपदेश दिया, पहले श्रद्धा नहीं थी ! अहंकार का नाश, श्रद्धा का होना और भगवान् की प्राप्ति--तीनों काम तुरन्त हो गये ! इन्द्र के बाद अग्नि और वायु ने भगवान् को जान लिया ! भगवान् की विशेष दया से इन लोगों का अभिमान नष्ट हुआ ! भगवान् ने दया करके ही अपना तत्व बतलाया ! उनकी कोई चेष्टा श्रद्धा की नहीं थी ! भगवान् ने स्वयं ही दया करके प्रकट होकर उनको ज्ञान दिया ! नियम से तो सब बात होती ही है !भगवान् जब चाहे विशेष दया कर देते हैं !

              हनुमानजीकी की भगवान् से भेंट होती है तब ब्राह्मण रूप लेकर आते हैं ! वाल्मीकिरामायण में विस्तार से यह प्रसंग आता है ! राम-लक्ष्मण से कहते हैं---यह ब्रह्म्चारी विद्वान है ! इतनी बातें हमसे की, परन्तु व्याकरण की कोई अशुद्धि नहीं आयी ! भगवान् से वार्तालाप करके ही हनुमानजी का भाव बदल गया, श्रद्धा हो गयी, प्राप्ति हो गयी !
              बालीपर विशेष दया हुई, बाली कहता है----`धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं ! मारेहु मोहि ब्याध की नाई` श्रद्धा नहीं है ! वाल्मीकि- रामायण में विशेष वर्णन आता है ! बालि ने बहुत जवाब-सवाल किये ! यहाँ तक कह देता है कि मेरे सामने आकर युद्ध करते तो यमलोक भेज देता !धर्मसे, नितिसे, युक्तिसे उसने राम कि बहुत निन्दा की ! भगवान् में उसकी श्रद्धा नाम-निशान नहीं है ! भगवान् ने बहुत छिपे हुए शब्दों में उसको अपना प्रभाव दिखला दिया ! बस, पहचान गया ! पापी था अश्रद्धालु था, पर क्षण भर में श्रद्धा हो गयी ! भगवान् की विशेष कृपा थी ! वाल्मीकि-रामायण इतिहास में प्रधान प्रमाण है ही ! इस प्रसंग में कई अध्याय हैं ! खूब शास्त्रार्थ हुआ है ! भगवान् उसका युक्तियों से ठीक उत्तर नहीं दे सके ! उनकी इच्छा नहीं थी ! इतना ही कहा- मुझ निर्दोषी को तुम दोष रहे हो ! तर्क से सिद्ध नहीं किया ! ईश्वरत्वसे,प्रभाव से सिद्ध कर दिया ! ईश्वर की विशेष कृपा की बात थी ! क्षमा ने श्रद्धा करा दी और अपनी प्राप्ति करा दी !

             महात्मा की विशेष कृपा की बात--गौरांग महाप्रभु का उदाहरण विस्तार से मिलता है ! विवेकानन्द पर श्रीरामकृष्ण परमहंस ने कृपा की, नास्तिक था ! नियम की बात थोड़े ही थी ! ऐसे ही हरिदास की कृपा वेश्यापर हुई !

           पिंगला वेश्या इतनी नीच थी ! दत्तात्रेयजी के दर्शन मात्र से उसकी बुद्धि बदल गयी और उसे भगवत्प्राप्ति हो गयी ! महात्माओं के दर्शन से, स्पर्श से बहुतों की क्रिया बदल गयी हो और श्रद्धा होकर भगवत्प्राप्ति हो गयी--ऐसे बहुत से उदाहरण हैं ! जाजलि और तुलाधर वैश्य की बात------जाजली की तुलाधर में कोई श्रद्धा नहीं थी ! उनसे वार्तालाप हुआ, श्रद्धा नहीं बढ़ी ! प्रभाव देखकर श्रद्धा हो गयी ! उसकी अच्छी गति हुई !


नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक सत्संगकी मार्मिक बातें ! श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड १२८३ ,गीता प्रेस गोरखपुर ]