क्रमश:
ब्राह्मण ने फिर
जप प्रारंभ कर दिया | देवताओ के सौ
वर्ष और बीत गये |पुरश्चरण के समाप्त हो जाने पर साक्षात्
धर्म ने प्रसन्न होकर ब्राह्मण को दर्शन दिये और स्वर्गादी लोक मांगने को कहा |परन्तु ब्राह्मण ने धर्म को भी यही उत्तर दिया की ‘मुझे
सनातन लोको से क्या प्रयोजन है, मैं तो गायत्री का जप करके
आनंद करूँगा |’ इतने में ही काल (आयु का परिमाण करने वाला
देवता ), मृत्यु ( प्राणों का वियोग करने वाला देवता ) और यम
(पुन्य-पाप काफल देना वाला देवता ) भी उसकी तपस्या के प्रभाव से वह आ पहुंचे |
यम और काल ने भी उसकी तपस्या की बड़ी प्रशंसा की | उसी समय तीर्थ निमित्त निकले हुए राजा इक्षवांकु भी वहा आ पहुंचे |
राजा ने उस तपस्वी ब्राह्मण को बहुत सा धन देना चाहा;परन्तु ब्राह्मण ने कहा की ‘मैंने तो प्रवात्र-धर्म
को त्याग कर निवृति-धर्म अंगीकार किया है, अत मुझे धन की कोई
आवश्यकता नहीं है | तुम्ही कुछ चाहो तो मुझसे मांग सकते हो |
मैं अपने तपस्या के द्वारा तुम्हारा कौन सा कार्य सिद्ध करूँ ?’
राजा ने उस तपस्वी मुनि से उसके जप का फल मांग लिया | तपस्वी ब्राह्मण अपने जप का पूरा का पूरा फल राजा को देने के लिए तैयार हो
गया, किन्तु राजा उसे स्वीकार करने में हिचकिचाने लगे |
बड़ी देर तक दोनों में वाद-विवाद चलता रहा | ब्राह्मण
सत्य की दुहाई देकर राजा को मांगी हुई वस्तु स्वीकार करने के लिए आग्रह करता था और
राजा क्षत्रियतत्व की दुहाई देकर उससे लेने में धतं की हानि बतलाते थे | अंत में दोनों में यह समझोता हुआ की ब्राह्मण के जप के फल को राजा ग्रहण
कर ले और बदले में राजा के पुन्य फल को ब्राह्मण स्वीकार कर ले | उनके इस निश्चय को जान कर विष्णु आदि देवता वहा उपस्थित हुए और दोनों के
कार्य की सराहना करने लगे, आकाश से पुष्पों की वर्षा होने
लगी |अंत में ब्राह्मण और राजा दोनों योग के द्वारा समाधी
में स्थित हो गये | उस समय ब्राह्मण के ब्रह्मरंध्र में से
एक बड़ा भारी तेज का पुन्ज निकला तथा सबके देखते-देखते स्वर्ग की और चला गया और वहा
से ब्रह्म लोक में प्रवेश कर गया | ब्रह्मा ने उस तेज का
स्वागत किया और कहा की आहा !जो फल योगिओ को मिलता है, वही जप
करने वालो को भी मिलता है | उसके बाद ब्रह्मा ने उस तेज को
नित्य आत्मा और ब्रह्म की एकता का उपदेश दिया, तब उस तेज ने
ब्रह्मा के मुख में प्रवेश किया और राजा ने भी ब्राह्मण के भाँती ब्रह्मा के शरीर
में प्रवेश किया | इस प्रकार शास्त्रों में गायत्री जप का
महान फल बतलाया गया है | अत: कल्याण कामी को चाहिए की वे इस
स्वल्प आयास से साध्य होने वाले सांध्य और गायत्री रूप साधन के द्वारा
शीघ्र-से-शिघ्र मुक्ति लाभ करे |
जयदयाल गोयन्दका, तत्व
चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस
गोरखपुर