गत ब्लॉग से आगे.....
वे भगवान के लिये ही प्राण धारण करते है; उनका खाने-पीने, सोने-जागने, आदि किसी भी क्रिया में अपना प्रयोजन ही नहीं रह जाता, वे जो कुछ भी करते है, सब भगवान के लिये ही | वे भगवान में श्रद्धा-भक्ति रखने वाले प्रेमी भक्तो के बीच परस्पर भगवान का बोध कराने के उदेश्य से अपने-अपने अनुभव के अनुसार भगवान के गुण, प्रभाव, तत्व, रहस्य, और लीला-महात्म्य को समझते-समझाते हुए श्रद्धा-प्रीतिपूर्वक, भगवद्विषय का ही कथन करते रहते है; एवं इस प्रकार प्रत्येक क्रिया में निरंतर परम आनंद का अनुभव करके नित्य संतुष्ट रहते है; उन्हें भगवद्विषय की बातो के श्रवण, मनन, कीर्तन और पठन-पाठन से ही परम शांति, आनंद और संतोष प्राप्त होता है, सांसारिक वस्तुओ से उनके आनंद और संतोष का कुछ भी संबंध नहीं रह जाता; और वे भगवान के नाम, गुण, प्रभाव, लीला, स्वरुप, तत्व और रहस्य का यथा-योग्य श्रवण, मनन और कीर्तन करते हुए एवं उनकी रूचि, आज्ञा और संकेत के अनुसार उनमे प्रेम होने के लिये ही प्रत्येक क्रिया करते हुए, मन के द्वारा उनको सदा-सर्वदा प्रत्यक्षवत् अपने समीप संमझकर निरंतर प्रीतिपूर्वक उनके दर्शन, स्पर्श और उनके साथ वार्तालाप आदि क्रीडा करते हुए उन्ही में निरंतर रमण करते रहते हैं | वे भक्त विषयभोगो की कामना के लिये भगवान को नहीं भजते, अपितु किसी प्रकार का भी फल न चाहकर केवल निष्काम अनन्य प्रेमपूर्वक ही निरन्तर भजन करते है, ऐसे अनन्य प्रेमी भक्तो को भगवान् वह बुद्धियोग प्रदान करते है – उनके अन्तकरण में अपने प्रभाव और रहस्य सहित निर्गुण-निराकार तत्व को तथा लीला, रहस्य, गुण और प्रभाव आदि के सहित निर्गुण निराकार और साकार तत्व को यथार्थ रूप से समझने की शक्ति प्रदान कर देते है, जिससे वे भगवान को प्रत्यक्ष करके सहज ही उन्हें प्राप्त कर लेते है | इस पाकर भगवत कृपा से उन प्रेमी भक्तो के हृदय के अन्धकार का सर्वथा नाश होकर उसमे सदा के लिए ज्ञान का प्रकाश छा जाता है और वे भगवान् की इस सहायता से भगवान् को प्राप्त करके जीवन सफल हो जाते है |
हमे भी भगवान् की इस अनवरत बरसने
वाली अपार अनन्त असीम कृपा की ओर ध्यान देकर उससे वास्तविक लाभ उठाते हुए अपने
जीवन को कृतार्थ करना चाहिये | हमे अपने
अब तक के इस जीवन पर दृष्टि डालनी चाहिये | कितने
बड़े शोक का विषय है कि हमारी इतनी आयु व्यर्थ प्रमाद में चली गयी | जिस महत्वपूर्ण काम के लिये हम मनुष्य-शरीर में आये थे, उसे तो सर्वथा भूल ही गये | इस प्रकार
सुअवसर पाकर भी यदि हम नहीं चेतेंगे तो हमारे लिये बहुत ही हानि है |
श्रुति भगवती हमे चेता रही है –
‘यदि इस मनुष्य-जन्म में ही
भगवान् को जान लिया तो अच्छी बात है, और यदि इस जन्म में नहीं जाना तो बड़ी भारी हानि है | अत: धीर पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सर्वान्तर्यामी परमात्मा को पहचान लेते
है, जिससे इस लोक से प्रयाण करनेपर वे अमृतस्वरूप हो
जाते है अर्थात अमृतमय परमात्मा को प्राप्त हो जाते है |’
(केन० २|५) |.......शेष अगले ब्लॉग में
जयदयाल गोयन्दका ,तत्त्वचिंतामणि कोड ६८३ , गीताप्रेस गोरखपुर
जयदयाल गोयन्दका ,तत्त्वचिंतामणि कोड ६८३ , गीताप्रेस गोरखपुर