* दीपावली पर चेतावनी *
गत ब्लॉग से आगे......
नचिकेता को उपदेश देते हुए यमराज कहते है –
‘उठो जागो और श्रेष्ठ
पुरुषों के पास जाकर उस ज्ञान को प्राप्त करो | क्योंकि
तत्वज्ञ पुरुष उस मार्ग को छुरे की तीक्ष्ण और दुस्तर धार के समान दुर्गम बतलाते
है |’ (कंठ० १|३|१४)
इसलिये जब तक मृत्यु दूर है,वृद्धावस्था नहीं आई है, शरीर रोगाक्रांत होकर जर्जर नहीं हो गया है, उसके पहले-पहले ही
आत्मकल्याण का कामकर लेना चाहिये | नहीं तो पीछे अत्यंत
पश्चाताप करने पर भी कोई काम सिद्ध नहीं होगा |
श्री तुलसीदास जी ने कहा है –
सो परत्र दुःख पावई सिर धुनि धुनि पछिताई |
कालही कर्मही ईश्वरही मिथ्या दोष लगायी ||
अत: पहले ही सावधान हो जाना चाहिये | इन
ऐश-आराम, स्वाद-शौकीनी, भोग-विलास
के पदार्थो में फँसकर इनके सेवन में अपनी बहुमूल्य आयु को बिताना तो जीवन को
मिट्टी में मिला कर नष्ट करना है | इन विषयों में प्रतीत
होने वाला सुख वास्तव में सुख नहीं है | हमे
भ्रम के कारण दुःख ही सुख रूप से भास रहा है | इसलिये कल्याणकामी
विवेकी मनुष्य को उचित है कि इन सबको धोखे की टट्टी समझ कर दूर से ही त्याग दे |
गीता में भगवान –
‘जो ये इन्द्रियो तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग है, वे यद्यपि विषयी पुरुषो को सुख
रूप भासते है, तो
भी दुःख के ही हेतु है और आदि अन्त वाले अर्थात अनित्य है;इसलिये हे अर्जुन !
बुद्धिमान विवेकी पुरुष उसमे नहीं रमता |’ (गीता ५|२२)
योगदर्शन में कहा है –
‘परिणामदुःख, ताप
दुःख, संस्कार
दुःख- आदि अनेको दुखो से मिश्रित होने तथा सात्विक, राजस, तामस
वृतियो में विरोध होने से भी विवेकी पुरुषो की दृष्टि में सम्पूर्ण विषय सुख
दुखरूप ही है |’ (साधनपाद १५)
यदि कोई मनुष्य अज्ञानवश इस विषय सुख को सुख भी माने तो विचार करने
पर मालूम हो जायेगा कि यह सुख कितना अस्थिर है | देश, काल
और वस्तु से परिछिन्न होने के कारण सर्वथा क्षणभंगुर, विनाशशील और अत्यंत
अल्प ही है | इसलिये तो बुद्धिमान नचिकेता ने यमराज की अनेक प्रलोभन देने पर भी
उनसे यही कहा –
‘हे यमराज ! ये
समस्त भोग ‘कल रहेंगे या नहीं’ इस प्रकार के सन्देह युक्त एवं सम्पूर्ण इन्द्रियों के तेज को
जीर्ण करने वाले है | यही क्या, यह सारा जीवन भी बहुत थोडा ही है | इसलिये
ये आपके वाहन और नाच-गान आपके पास ही रहे , मुझे इनकी आवश्यकता नहीं है |’ (कंठ० १|१|२६)
यह तो इन जीवन-काल में इन भोगो से मिलने वाले सुख की बात है | मरने
के बाद तो इनमे से कोई भी पदार्थ किसी भी हालत में किंचितमात्र भी किसी के साथ जा
ही नहीं सकता |.......शेष अगले ब्लॉग में
जयदयाल गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर