※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 30 दिसंबर 2012

देश के कल्याण के लिए संस्कृत, आयुर्वेद, हिंदी तथा गीता-रामायण के प्रचार की आवश्यकता



|| श्री हरी || 

      संस्कृत में श्रीमद्भभगवद्गीता और हिंदी में श्रीमद्गोस्वामी तुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस – ये दोनों उत्तम शिक्षा देने वाले सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है | इनके अनुसार आचरण करने पर मनुष्य का जीवन उच्चकोटि का हो जाता है | इन दोनों ग्रंथो की प्रशंसा महात्मा गाँधी ने भी बहुत की है | इनको सारे संसार के लिए उपयोगी कहे तो कोई अत्युक्ति न होगी | इनकी शैली बड़ी ही सुंदर है | इनमें श्लोक, छन्द, चौपाई, दोहे आदि काव्य की दृष्टि से भी अत्यंत रसयुक्त,मधुर,सुंदर और विशुद्ध है | अत एव इन दोनों ग्रंथो का सार्वजनिक प्रचार होना बहुत ही आवश्यक है | श्रीमद्भभगवद्गीता  पर जितनी टीकाये, भाष्य और अनुवाद मिलते है, उतने किसी भी संस्कृत या हिंदी के ग्रन्थ पर नहीं मिलते | इससे सिद्ध होता है की यह बहुत उच्चकोटि का ग्रन्थ है | सभी सम्प्रदायवालो ने इसको अपनाया है तथा भारतवर्ष के सभी प्रान्तों में इसका सम्मान है | इसी प्रकार विदेशो में भी इसका बड़ा आदर है | श्रीरामचरितमानस का हिंदी वांग्मय में सबसे बढ़कर है, भारत के सभी प्रान्तों में इसका समादर है | विदेशो में भी लोग इसे मानते है | रूसी भाषा में इसका अनुवाद हुआ है | गीताप्रेस, गोरखपुर में भी  श्रीमद्भभगवद्गीता और श्रीरामचरितमानस के प्रकाशन को प्रथम स्थान दिया गया है | दोनों ग्रंथ प्रचूर संख्या में छापकर उन्हें सस्ते मूल्य में दिए जाने की चेष्टा की जाती है |

      अत: हमारी सभी पाठक-पाठिकाओं से यह प्रार्थना है कि उन्हें गीता और रामायण के पाठ करने का नियम यथा शक्ति बना लेना चाहिए और उनके अर्थ और भाव को समझकर उसके अनुसार जीवन बनाने की विशेष चेष्टा करनी चाहिए | इससे निश्चय ही कल्याण हो सकता है |

     गीता और रामायण दोनों ही अध्यात्म दृष्टि से तो बहुत लाभ की वस्तु है ही, साथ-ही-साथ संस्कृत और हिंदी के ज्ञान की दृष्टि से तथा बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक और व्यवहारिक लाभ की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है | अत: सरकार से तथा भारतवासी भाइयों और बहनों से हमारी प्रार्थना है कि सांप्रदायिक दृष्टि को छोड़ कर सभी के बौद्धिक , नैतिक, सामाजिक तथा व्यावहारिक लाभ की दृष्टि से इनका प्रचार करें | आज भारतीय संस्कृति की संरक्षिका संस्कृत भाषा के उत्कर्ष के लिए सामयिक परिवेश में विचार विमर्श और प्रचार-प्रसार  की योजना बना कर उसे कार्यान्वित करना नितान्त आवश्यक है | अत: समाज और सरकार – दोनों का प्रधान कर्तव्य है कि इस विषय पर तत्काल ध्यान दिया जाये अन्यथा भारतीय संस्कृति की निधि लुप्त-सी हो रही है | यह राष्ट्र अथवा समाज के लिए एक प्रकार का कलंक और पश्चाताप का विषय होगा |

‘भारती भातु भारते |’
 नारायण   नारायण    नारायण    नारायण    नारायण  

ब्रह्मलीन परम श्रधेय श्री जयदयालजी गोयन्दका

कल्याण अंक वर्ष ८५, संख्या ९, पन्ना न० ८७८, गीताप्रेस, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश २७३००५