|| श्री हरी
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आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल, पूर्णिमा,
रविवार, वि० स० २०६९
अपने आत्मा के समान सब जगह
सुख-दुःख को समान देखना तथा सब जगह आत्मा को परमेश्वर में एकीभाव से प्रत्यक्ष की
भाँती देखना बहुत ऊचा ज्ञान है |
चिंतनमात्र का अभाव करते-करते अभाव
करने वाली वृति भी शान्त हो जाय, कोई भी स्फुरणा शेष न रहे तथा एक अर्थमात्र वस्तु
ही शेष रह जाये, यह समाधी का लक्षण है |
श्री नारायण देव के प्रेम में ऐसी
निमंग्नता हो की शरीर और संसार की सुधि ही न रहे, यह बहुत उच्ची भक्ति है |
नेति-नेति के अभ्यास से
‘नेति-नेति’ रूप निषेध करने वाले संस्कार का भी शान्त आत्मा में या परमात्मा में
शान्त हो जाने के समान ध्यान की उच्ची स्थिति और क्या होगी?
परमेश्वर का हर समय स्मरण न करना
और उसका गुणानुवाद सुनने के समय न मिलना बहुत बड़े शोक का विषय है |
मनुष्य मेंन दोष देखकर उससे घ्रणा
या द्वेष नहीं करना चाहिये | घ्रणा या द्वेष करना हो तो मनुष्य के अन्दर रहने वाले
दोषविकारो से करना चाहिये | जैसे किसी मनुष्य को प्लेग हो जाने पर उसके घरवाले
प्लेग के भय से उसके पास जाना नहीं चाहते, परन्तु उसको प्लेग की बीमारी से बचाना
अवश्य चाहते है, इसलिये अपने को बचाते हुए यथासाध्य चेष्टा पूरी तरह से करते है,
क्योकि वह उनका प्यारा है | इसी प्रकार जिस मनुष्य में चोरी,जारी आदि दोष रुपी रोग
हो, उसको अपना प्यारा बन्धु समझ कर उसके साथ घ्रणा या द्वेष न करके उसके रोग से
बचते हुए उसे रोगमुक्त करने की चेष्टा करनी चाहिये |
शेष अगले ब्लॉग में ....
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
ब्रहमलीन परमश्रधेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, तत्वचिंतामणि,
गीताप्रेस,
गोरखपुर