※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

पशुधन -1-




|| श्री हरिः ||

आज की शुभ तिथिपंचांग

पौष शुक्ल, षष्ठी, गुरुवार , वि० स० २०६९


आज भारतवर्ष की जैसी दुर्दशा है, उसे देख कर विचारवान पुरुषमात्र प्राय: दहल उठेंगे; भारतवर्ष की वह पुरानी सभ्यता, उसकी शिक्षा प्रणाली और उसका बल-बुद्धि, तेज से भरा हुआ जीवन आज कहाँ है ? जिस भारतवर्ष में अन्य समस्त देशो के सहस्त्रों नर-नारी शिक्षा ग्रहण कर अपना जीवन उन्नत बनाते थे, आज उनका वह अलौकिक गौरव कहाँ है ? आज तो सर्वथा बलहीन, विद्याहीन, गौरव हीन और धनहीन होकर पराधीन हो गया है | इस अवनति का कारण क्या है ? विचार करने से अनेको कारण जान पड़ते है | उन्हीं कारणों में से पशुओं का ह्रास भी एक प्रधान कारण है | इस विषय में कुछ लिखने का प्रयत्न किया जा रहा है |   

पूर्वकाल में इस देश में पशुओं की कितनी अधिकता थी, यदि इस बात पर पूर्ण रूप से विचार किया जाये तथा उनकी संख्या का हिसाब लगाया जाये तो बहुत-से लोग उस संख्या को असम्भव समझेंगे | किन्तु यह ऐतिहासिक और प्रमाणिक बात है | वाल्मीकिय  रामायण के अयोध्याकाण्ड में कथा आती है कि भगवान रामचन्द्रजी के पास त्रिजट नाम का एक ब्राह्मण आया और उसने उनसे धन की याचना की | महाराज ने उससे कहा कि मेरे पास बहुत-सी गौए है, आप अपने हाथ से एक डंडा फेकिये, वह डंडा जहाँ जाकर गिरे, यहाँ से वहां तक जितनी गौए खड़ी हो सके, आप ले जाइए |’   

विचार करने पर पता लगता है कि जहाँ विनोद रूप में एक याचक को इस प्रकार हजारों गौए दान में दी जा सकती है, वहाँ दान में देने वाले के पास कितनी गौए हो सकती है? भागवत में राजा नृग का इतिहास बहुत ही प्रसिद्ध है, वे हजारो गौओ का दान प्रतिदिन किया करते थे | केवल पांच हज़ार वर्ष पहले की बात है कि नन्द-उपनन्द आदि गोपो के पास लाख-लाख गौएँ रहा करती थी, यह बात भी भागवत में ही है | महाभारत के विराटपर्व से भी यह पता चलता है की राजा विराट के पास करीब लाख गौएँ थीं, जिनका हरण करने के लिये कौरवों की विशाल सेना ने दो भागों में विभक्त होकर विराटनगर पर चढ़ाई की थी |.....शेष अगले ब्लॉग में

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक कोड ६८३ , गीताप्रेस गोरखपुर