|| श्री हरिः ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल, सप्तमी, शुक्रवार, वि० स० २०६९
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जिस प्रकार गौओकी अधिकता थी,उसी प्रकार अन्य पशुओं की भी बहुलता थी | घोड़े, हाथी
आदि पशुओ की संख्या का अनुमान लगाइये, एक अक्षोहिणी सेना में इक्कीस हज़ार आठ सौ सत्तर (२१,८७०) हाथी, पैसठ हज़ार छः सौ
दस (६५,६१०) घुड़सवारों के घोड़े और सत्तासी हज़ार चार सौ अस्सी (८७४८०) रथो के घोड़े होते
है | ऐसी तेईस- तेईस अक्षोहिणी सेना लेकर जरासन्ध ने सत्रह बार भगवान श्री कृष्ण पर
चढ़ाई की थी एवं प्रतिबार भगवान ने सबका विनाश कर दिया था | महाभारत के उद्योग पर्व
में कौरवों की ओर से ग्यारह अक्षोहिणी सेना और पांडवो की ओर से सात अक्षोहिणी सेना
कुरूक्षेत्रके मैदान में इकठ्ठी हुई थी, ऐसा उल्लेख मिलता है | उनमें केवल ग्यारह
मनुष्य ही शेष बचे थे, बाकि की सब-की-सब सेना मारी गयी | इस प्रकार के बड़े-बड़े
संहार होते रहने पर भी करोड़ो पशु वर्तमान थे | किन्तु बड़े दुःख के साथ लिखना पड़
रहा है कि आज उस अनुपात से विचार करने पर रूपये में एक आना भी पशुओ की संख्या नहीं
रह गयी है |
देश,
जाति, धर्म, समाज, व्यापार तथा स्वास्थ्य की रक्षा और वृद्धि में पशु-धन एक मुख्य
हेतु माना गया है | आर्थिक दृष्टि से पशु-धन का होना सबके लिए गौरव की बात समझी
गयी है | खासकर वैश्यजाति केलिए तो यह केवल आर्थिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि पशु
पालन उनके धर्म का एक मुख्य अंग भी है | मनुस्मृति में कहा गया है –
पशूनां
रक्षणं दान्मिज्याध्ययनमेव च|
वणीक्व्पथं
कुसीदं च वैस्यस्य कृषिमेव च |
अर्थात
‘वैश्यो का धर्म पशु पालन करना, दान देना, यज्ञ करना, वेद-शास्त्रों को पढना,
व्यापार, ब्याज और कृषि द्वारा जीविका चलाना है |’ (मनु० स्मृति १/१०).....शेष अगले ब्लॉग में
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण, श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.....
जयदयाल
गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर