※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 19 जनवरी 2013

पशु धन -3-



|| श्री हरिः ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल, अष्टमी, शनिवार, वि० स० २०६९

                          
गौपूजन
यहाँ यह बात भी ध्यान में रखने की है कि कृषिकर्म करने वाले सभी मनुष्य वैश्यो के ही तुल्य है | अत: उन सबके लिए भी पशु पालन धर्म का एक मुख्य अंग हो जाता है किन्तु आज भारत वर्ष में बहुत ही कम वैश्य और कृषि कर्म करने वाले लोग ऐसे है जो आर्थिक और धार्मिक-दृष्टि से इतना महत्व रखने वाली  वस्तु की ओर यथोचित ध्यान देते हो | वैश्य और किसान पशुओ की सहायता से खेत जोत कर उपजाए हुए अन्न से सम्बन्ध रखते है , उनकी नस-नस में पशुओ के परिश्रम से उत्पन्न हुए अन्न का रक्त दौड़ता है | किन्तु मूक पशुओ की दशा सुधरे, उनकी वृद्धि हो, वे पुष्ट हो, इस बात की ओर उनका ध्यान कम रहता है |

सब पशुओ की उन्नति की बात तो दूर रही, पशुओ में सर्वश्रेष्ठ गौएँ जिनका महत्व शास्त्रों की दृष्टि से भी बहुत अधिक बतलाया गया है और जिसका आदर्श स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने व्रज में गौओ को चराकर दिखलाया है तथा जिसे वैश्यों के लिये धर्म का प्रधान अंग बतलाया गया है | (गीता १८ |४४)

जो देवता, ऋषि, पितर,मनुष्य आदि सबको अपने दूध, दही के द्वारा तृप्त करने वाली है, आज उनकी कितनी उपेक्षा हो रही है, यह देख कर चित में खेद हुए बिना नहीं रह सकता | प्रतिवर्ष लाखो की संख्या में गौओ का ह्रास होता चला जा रहा है तथापि हिन्दू –जनता उनकी रक्षा से इस प्रकार उपराम-सी हो रही है, मानो उसे इस बात की खबर ही नहीं है | इसका भयानक परिणाम यह हो रहा है की मनुष्य-जीवन के लियेधर्म और स्वास्थ्य दोनों की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक माने हुए दूध, घी,दही आदि का सर्व-साधारण के लिए प्राप्त होना कठिन होता जा रहा है | दूध दही के अभाव से भारतीय सन्तानका स्वास्थ्य किस प्रकार गिरता जा रहा है, यह तो धर्म को न मानने वाले भी प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते है |

जहाँ कुछ दिन पहले इसी देश में दूध पैसे सेर, पवित्र घी तीन-चार आने सेर मिलता था, वहाँ आज (स० २०००)  पवित्र दूध दो आने सेर और पवित्र घी एक रूपये सेर भी सब जगह सर्व साधारण को नहीं मिल पाता | यदि समय रहते भारत वासी सावधान नहीं होंगे , इसी तरह गोधन के उपेक्षा करते रहेंगे और गौओ के बढ़ते हुए ह्रास हो रोकने की चेष्टा नहीं करेंगे तो भविष्य और भी भयानक हो सकता है | उस समय कोई उपाय करना भी कठिन हो जायेगा; इसलिए विचारवान पुरुष को चाहिए कि वे पहले ही सावधान हो जाए |

खास कर प्रत्येक हिन्दू के लिए तो इस समय यह एक प्रधान कर्तव्य हो गया है कि वे इस ओर ध्यान दें और सब प्रकार से गौओ की रक्षा के लिए चेष्टा करे |....शेष अगले ब्ललाग में


श्री मन्न नारायण नारायण नारायण, श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.....

जयदयाल गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर