※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 20 जनवरी 2013

पशु धन -4-

|| श्री हरिः ||

आज की शुभ तिथिपंचांग
पौष शुक्ल, नवमी, रविवार, वि० स० २०६९


                        

   गौओ के ह्रास होने में निम्नलिखित कारण मुख्य है –

1.   जनता के अन्दर प्रतिदिन धर्म और ईश्वर का भय कम होता जा रहा है | अत: कम दूध देने वाली और दूध न देने वाली गौओ को कसाई के हाथ बेचने में अधिकाँश हिन्दू जनता भय नहीं करती |

2.   बहुत से निर्दय किसान दूध न देने वाली गौओ को अपने घर से निकाल देते है | वे मारी-मारी फिरती है और अंत में मवेशीखाने में पहुँचाई जाकर कसाई के हाथ में पड़ जाती है |

3.   प्रतिवर्ष सूखे और ताजें मॉस केलिए तथा चमड़े के लिए लाखो जीवित गौओ की हत्या की जाती है |

4.   बहुत से धन के लोभी, हीन वृत्ति वाले मनुष्य अधिक दूध देने वाली गौओ को खरीदकर उनके बछड़ो को तो निरर्थक समझकर कसाई के हाथ बेच देते है और फुँके के द्वारा उन गौओ को विवश करके उनका सारा दूध निकाल लेते है | परिणाम यह होता है कि कुछ ही दिनों में वे गौए निक्कमी हो जाती है  और उस समय वे उन्हें कसाई के हाथ बेच देते है |

5.   सांड अच्छे न मिलने के कारण गौओ की नसल बिगड़ती जा रही है, उनसे अच्छी संतान उत्पन्न नहीं हो सकती | उनके बच्चे बहुत ही कम आयु वाले, कमजोर,और दुबले पतले होते है |

6.   गौओ के निमित्त छोड़ी हुई गोचर भूमि को जमींदार और किसान आदि लोभवश जोतते जाते है | अत: चारे के अभाव में प्रतिवर्ष हजारों गौएँ मर जाती है |

7.   मॉस खाने वाले मनुष्य के लिए और बाढ़,महामारी, अकाल, आदि दैवी कोप के कारण प्रतिवर्ष लाखो की संख्या में गौएँ नष्ट हो जाती हैं |


नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक कोड ६८३ , गीताप्रेस गोरखपुर