|| श्री हरी
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आज की शुभ
तिथि – पंचांग
माघ
कृष्ण,तृतीया ,बुधवार, वि० स० २०६९
प्रेम
की जो महिमा शास्त्रों में बतलाई गयी है, वैसा प्रेम यदि हो जाय तो कल्याण की तो बात ही क्या है ? उसके द्वारा हजारों का कल्याण हो जाय, उस प्रेम की
सिद्धि किसी को भी हो जाय तो मुक्ति तो उसके चरणों में निवास करे |
यह बात बिलकुल सच्ची है |
भगवान् के घर अंधेर नहीं है, क्योंकि अपने ऊपर
भी तो घटाकर देखते हैं | भगवान् के घर मुझे अंधेर नहीं दीखता
| साक्षात् सूर्यनारायण हैं, इनको
नारायण समझकर उपासना करे तो ये भी उसे कुपथ्य से बचा लेते हैं, रक्षा करते हैं, मेरी चौदह वर्ष की आयु में मैंने
सूर्य भगवान् की उपासना की थी | उस समय मेरे में पर
स्त्रियों के प्रति नेत्रों का दोष और मनका दोष कितनी बार घटित हुआ होगा, मैं नहीं बता सकता | सूर्य भगवान् ने मेरी इतनी
रक्षा की जिसका वर्णन मैं नहीं कर सकता, फिर भगवान् रक्षा
करें इसमें बात ही कौन सी है | यह बात विश्वास की है कि जब-जब काम, क्रोध का आक्रमण हो उस समय भगवान् से प्रार्थना करे—‘हे नाथ ! हे नाथ !’ उस व्यक्ति को अवश्य सहारा मिलता
है,यह बात खरी है |
कोई व्यक्ति महात्मा
बना हुआ है, उसमें कोई दोष है तो उसे अपना दोष निकालना चाहिए |
सच्चा महात्मा तो दोष निकालेगा,किन्तु
जो बना हुआ है वह क्या निकालेगा | यदि कहो—भगवान् को तो चेतना चाहिए कि उनके राज्य में यह अंधेर क्यों चलता है?
संसार में दम्भी हैं दंभ कर रहे हैं |उसमें
भगवान् का क्या हाथ है | भगवान् तो उसीपर हाथ डालते हैं जो
भगवान् की शरण हो जाता है | आजकल पाखण्डी लोग भगवान् बनकर
अपने आपको ही पुजवा रहें हैं, भगवान् उन्हें अवश्य दण्ड
देंगे | और बहुत-सी बातें हैं | जो अपना उच्छिष्ट (जूठन) प्रसाद बताकर लोगों को वितरित करता है,
मैं उसका विरोध करता हूँ | जो व्यक्ति अपना
उच्छिष्ट दूसरे को देता है, उसको सबसे ज्यादा दण्ड ईश्वर के
घर में मिलेगा | वह
उसकी मूर्खता है | संसार में कोई भी मनुष्य अपना चित्र पुजवाता है, अपनी जूठन देता है,
वह स्वयं तो डूबता ही है और दूसरों को भी डुबाता है |
भगवान् यदि मुझे यह योग्यता दे
दें तो मैं पैर पुजवा सकता हूँ, किन्तु यह बात
सच्ची होनी चाहिए | मैं जान-बूझकर नरक में नहीं जाना चाहता |
यदि भगवान् यह वरदान दे दें कि जिस जिसका तू गुरु बनेगा उसको दर्शन
दे दूँगा तो फिर यह काम आजसे ही प्रारम्भ कर दूँ, विलम्ब
क्यों करूँ | दस बीस हजार नहीं तो सौ दो सौ को तो शिष्य बना
ही लेता | किन्तु एकको भी नहीं बनाया | क्यों नहीं बनाया ? मैं नरक में थोड़े ही जाना चाहता
हूँ | मेरी कसौटी बड़ी कड़ी है, मैं तो
तुरत दान महापुण्य समझता हूँ | श्रीरामकृष्ण के पास
विवेकानंदजी गये, पूछा—आपको भगवान् के
दर्शन हो गये ? कहा—हाँ | पूछा—दूसरे को भी करा सकते हैं ? उत्तर—हाँ |कहा मुझे करायें |
उन्होंने विवेकानन्द जी के सिर पर हाथ रखा, तो
सुनते है उनकों भगवान् के दर्शन हो गये | इस प्रकार का
चमत्कार यदि किसी में दीखे तो उसका उच्छिष्ट लेने के लिए मैं पहले नाम लिखाऊँगा |....शेष अगले ब्लॉग में