आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण ५, बुधवार, वि० स० २०६९
जहाँ योग तहँ भोग नही, जहाँ भोग नहीं योग |
जहाँ भोग तहँ रोग है, जहाँ रोग तहँ
सोग ||
भोगी से
कभी योग का साधन हो नहीं सकता | भोग का फल रोग और रोग का फल शोक है| अत:
पाप-ताप और रोग-शोक की आत्यंतिक निवृत्ति के
लिये विषयों से मुँह मोड़ कर साधन-पथ पर उत्तरोत्तर अग्रसर होते रहना चाहिये | संसार में सार वस्तु
परमात्मा है | उससे भिन्न सब कुछ सर्वथा निस्सार, क्षणिक और अनित्य है | अत: मायिक
पदार्थों के संग्रह और भोगों में आसक्त होने के कारण यदि इसी जन्म में हम परमात्मा
की प्राप्ति न कर सके तो निर्विवाद रूप से मानना होगा कि हमारा जीवन भार रूप है |
बन्धुओं ! आप जीवन-कर्तव्य पर विचार तो कीजिये ? भगवान आपको उन्नति के लिए आवाहन करते हैं | अवनत होना तो कर्तव्य-विमुखता है | भगवान कृष्ण की उद्बोधनमयी वाणी पर ध्यान दीजिये –
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् (गीता ६|५)
उद्धार का अर्थ क्या है? उन्नति | रुपये कमाना उन्नति नही है | संतान-वृद्धि भी उन्नति नही है |यह सब तो धरे रहेंगे | इनका मोह त्याग कर आत्मोद्धार के अति विलक्षण मार्ग पर आगे बढ़िये | समय को व्यर्थ न खोईये | जो लोग प्रमाद, आलस्य, निन्द्रा और भोग में समय को बिताते है वे अपने को जान बूझकर अग्नि में झोंकते है | प्रमाद ही मृत्यु है | समय को व्यर्थ खोना ही प्रमाद है | बहुत से भाई साधन के लिये समय निकालते है सही, परन्तु उन्हें लाभ नही के बराबर हो रहा है | इसका कारण यह है कि वे समय का सदुपयोग और सुधार नही करते | वे कभी एकान्त में बैठकर यह नही सोचते कि ऋषि सेवित तपोभूमि में, द्विज-जाति में उत्पत्ति और भगवत्-सम्बन्धी चर्चा करने -सुनने का अवसर, इन सारी अनुकूल सामग्रिओं के जूट जानेपर भी यदि सुधार न हुआ तो कबः होगा ? अब तो सावधानतया ऐसा प्रयत्न होना चाहिये कि जिससे थोड़े समय में ही बहुत अधिक लाभ किया जा सके |
जयदयाल गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर