आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण ६, गुरूवार, वि० स० २०६९
आगे की पन्क्तिओं में मैं अपनी साधारण बुद्धि के अनुसार जो निवेदन करुँगा, उससे आपको निश्चय हो सकेगा कि स्वल्प काल में ही अत्याधिक लाभ किस प्रकार लिया ज सकता है -
सबसे
पहले गायत्री के जप पर ही विचार किया जाता है | मन्त्र का जोर से उच्चारण करके जप
करने पर जो फल मिलता है उससे दस गुना अधिक फल उपाशु अर्थात जिह्वा से किये जाने
वाले जप से प्राप्त होता है | मानसिक जप का फल उपाशु से दसगुना तथा साधारण जप से
सौगुना अधिक होता है (मनु० २|८५) | इससे यही सिद्ध होता है कि मनुष्य सौ वर्षो में
साधारण जप से जो फल प्राप्त कर सकता है,
वही फल मानसिक जप द्वारा एक ही वर्ष में प्राप्त किया जा सकता है, फिर वही भजन यदि
निष्काम और गुप्तरीति से किया जाये तो यह कहना अत्युक्तिपूर्ण न होगा कि सौ वर्षो
में जो फल नहीं हो सकता वह छ: मास में ही प्राप्त हो सकता है |अश्वमेघ पर्वगत उत्तरगीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रति कहा है कि ‘जो पुरुष दिन-रात तत्पर होकर विज्ञान-आनंदघन के स्वरुप का चिंतन करता है वह शीघ्र ही पवित्र होकर परम पद को प्राप्त हो जाता है |’ यह कौन नहीं जानता की ध्रुवजी केवल साढ़े पांच महीनो में ही भगवदर्शन का अलभ्य लाभ उठाकर कृतकृत्य हो गए थे | मित्रो ! निश्चय रखिये कि यदि वैसी तत्परता के साथ लग जाये तो इस समय हम मनुष्य-जन्म का लाभ केवल पांच ही दिनों में प्राप्त कर सकते हैं | पर शोक ! भगवान का चिंतन कौन करते हैं ? चिंतन तो करते है विषयों का ! ऐसा करने को तो भगवान मिथ्याचार बतलाते है -
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् |
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते || (गीता ३|६)
‘जो मूढ़-बुद्धि पुरुष कर्मेन्द्रियों को हठ से रोक कर इन्द्रियों के भोगों को मन से चिंतन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहलाता है |’ ......शेष अगले ब्लॉग में
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण, श्री मन्न नारायण नारायण नारायण