|| श्री हरि||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल,त्रयोदशी,वीरवार,वि० स० २०६९
आनन्दमय
भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन होने के लिए सर्वोत्तम उपाय ‘सच्चा प्रेम’ है | वह प्रेम
किस प्रकार होना चाहिए और कैसे प्रेमसे भगवान् प्रकट होकर प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते
हैं ? इस विषय में आपकी सेवा में कुछ निवेदन किया जाता है |
अनेक विघ्न उपस्थित होनेपर भी ध्रुव की तरह
भगवान् के ध्यान में अचल रहनेसे भगवान् प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते हैं |
भक्त प्रह्लाद की तरह राम-नामपर आनन्दपूर्वक
सब प्रकार के कष्ट सहन करने के लिए एवं तीक्ष्ण तलवार की धार से मस्तक कटाने के
लिए सर्वदा प्रस्तुत रहने से भगवान् प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते हैं |
श्रीलक्ष्मण की तरह कामिनी-कांचन को त्यागकर
भगवान् के लिए वन-गमन करने से भगवान् प्रत्यक्ष मिल सकते हैं |
ऋषिकुमार
सुतीक्ष्ण की तरह प्रेमोंमत्त होकर विचरने से भगवान् मिल सकते हैं |
श्रीराम के शुभागमन के समाचार से सुतीक्ष्ण
की कैसी विलक्षण स्थिति होती है इसका वर्णन श्रीतुलसीदासजी ने बड़े ही प्रभावशाली
शब्दों में किया है | भगवान् शिव जी उमा से कहते हैं—
होइहैं
सुफल आजु मम लोचन | देखि बदन पंकज भव मोचन ||
निर्भर
प्रेम मगन मुनि ग्यानी | कहि न जाइ सो दसा भवानी ||
दिसि
अरु बिदिसि पंथ नहीं सूझा | को मैं चलेउं कहाँ नहिं बूझा ||
कबहुँक
फिरि पाछें पुनि जाई | कबहुँक नृत्य करइ गुन गाई ||
अबिरल
प्रेम भगति मुनि पाई | प्रभु देखैं तरु ओट लुकाई ||
अतिशय
प्रीति देखि रघुबीरा | प्रगटे हृदयँ हरन भव भीरा ||
मुनि
मग माझ अचल होइ बैसा | पुलक सरीर पनस फल जैसा ||
तब
रघुनाथ निकट चलि आए | देखि दसा निज जन मन भाए ||
राम
सुसाहेब संत प्रिय सेवक दुख दारिद दवन |
मुनि
सन प्रभु कह आइ उठु-उठु द्विज मम प्रान सम ||
श्रीहनुमानजी की तरह प्रेम में विह्वल होकर
अति श्रद्धा से भगवान् की शरण ग्रहण करने से भगवान् प्रत्यक्ष मिल सकते हैं |