|| श्री हरि||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल,चतुर्दशी,शुक्रवार, वि० स० २०६९
कुमार
भरत की तरह राम-दर्शन के लिए प्रेम में विह्वल होनेसे भगवान् प्रत्यक्ष मिल सकते
हैं | चौदह साल की अवधि पूरी होने के समय प्रेममूर्ति भरतजी की कैसी विलक्षण दशा
थी, इसका वर्णन श्रीतुलसीदासजी ने बहुत अच्छा किया है—
रहेउ
एक दिन अवधि अधारा | समुझत मन दुख भयउ अपारा ||
कारन
कवन नाथ नहिं आयउ | जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ ||
अहह
धन्य लछिमन बड़भागी | राम पदारबिंदु अनुरागी ||
कपटी
कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा | ताते नाथ संग नहिं लीन्हा ||
जौं
करनी समुझै प्रभु मोरी | नहिं निस्तार कलप सत कोरी ||
जन
अवगुन प्रभु मान न काऊ | दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ||
मोरे
जियँ भरोस दृढ़ सोई | मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई ||
बीतें
अवधि रहहिं जौं प्राना | अधम कवन जग मोहि समाना ||
राम
बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत |
बिप्र
रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जणू पोत ||
बैठे
देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात |
राम
राम रघुपति जपत स्रवत नयन जलपात ||
हनुमान के साथ वार्तालाप होनेके अनन्तर
श्रीरामचंद्रजी से भरत-मिलाप होनेके समय का वर्णन इस प्रकार है | शिव जी महाराज
देवी पार्वती से कहते हैं—
राजीव
लोचन स्रवत जल तन ललित पुलकावलि बनी |
अति
प्रेम हृदयँ लगाइ अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी ||
प्रभु
मिलत अनुजहि सोह मो पहिं जाति नहिं उपमा कही |
जनु
प्रेम अरु सिंगार तनु सिंगार तनु धरि मिले बार सुषमा लही ||
बूझत
कृपानिधि कुसल भरतहि बचन बेगि न आवई |
सुनु
सिवा सो सुख बचन मन ते भिन्न जान जो पावई ||
अब
कुसल कौसलनाथ आरत जानि जन दरसन दियो |
बूड़त
बिरह बारीस कृपानिधान मोहि कर गहि लियो ||