|| श्री हरि: ||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
सभी कार्यो में स्वार्थत्याग प्रधान है |
किसी भी वैध कार्य में स्वार्थ का त्याग होने से नीच-से-नीच प्राणी का भी कल्याण
हो जाता है |
उतने ही भोगो का अनासक्त भाव से ग्रहण किया जाये जितना शरीर
निर्वाह के लिये आवश्यक है | तथा केवल आसक्ति
का त्याग कर देने से भी कल्याण हो जाता है |
जो कुछ भी करे उसमे अहंकार का त्याग कर दे | किसी भी उत्तम
कार्य में अहंकार को पास न आने दें |
घर में भगवान की मूर्ति रखकर भक्ति-भाव से उसकी पूजा, आरती,
स्तुति एवं प्रार्थना करने से भी कल्याण हो जाता है |
प्रतिदिन नियमपूर्वक एकान्त में बैठकर मन से सम्पूर्ण संसार
को भूल जावे | इस प्रकार संसार को भुला देने से केवल एक चैतन्य आत्मा शेष रह जाता
है | तब उस चैतन्य स्वरुप का ध्यान करें | ध्यान करने से समाधी हो
जाती है और मुक्ति हो जाती है |
यह नियम ले-ले कि शरीर से वही
कार्य निष्काम भाव के साथ किया जायेगा की जिससे दूसरे का उपकार हो |
इसके समान कोई भी धर्म नहीं है | भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने कहा है
पर हित सरिस धर्म नहीं भाई | पर पीड़ा सम नहीं अधमाई ||
इस नियम को धारण कर लेने से भी संसार की मुक्ति हो जाती है
|
यदि इन्द्रियाँ और मन वश में हो तो भगवान का ध्यान ही सबसे
बढकर कल्याण का साधन है | यदि मन, इन्द्रियाँ वश में न हो तो ऐसी अवस्था में बिना
किसी कामना के केवल आत्मा के कल्याण केलिए व्रत एवं उपवास आदि का साधन करना चाहिये
| परमात्मा की प्राप्ति के अतिरिक्त उनसे कुछ भी कामना नहीं करनी चाहिये | इस
प्रकार साधन करने से भगवान की प्राप्ति होती है |सारांश यह है कि यदि मन एवं
इन्द्रियाँ वश में हो तो ध्यानयोग का साधन करे | नहीं तो बिना किसी कामना
के केवल भगवान की प्राप्ति के लिये ही तप एवं उपवास आदि का साधन करे |
लेकिन इन सबमें भी सुगम उपाय तो भजन ही है |
शेष अगले ब्लॉग में ...
नारायण
नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
ब्रह्मलीन परमश्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, भगवत्प्राप्ति
के विविध उपाय, कोड ३०९, गोरखपुर