|| श्री हरि:||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
वृक्ष, पत्थर, मनुष्य, पशु, पक्षी इत्यादि संसार की
जो भी वस्तुएँ दिखलाई दे उन सबमे यह भाव करे की भगवान ने ही ये सब रूप धारण कर रखे
है | मन से कहे जहाँ तुम्हारी इच्छा हो वहाँ जाओ,सब रूप तो भगवान ने ही धारण कर रखे है | जो भी वस्तुये दिखलाई देती है
वे सब परमात्मा नारायण के ही रूप है | सारे संसार में सबको भगवान का ही रूप
समझकर मन-ही-मन भगवदबुद्धि से सबको प्रणाम करे | एक परमात्मा ने ही अनन्त रूप
धारण कर लिए है, इस प्रकार के अभ्यास से भी कल्याण हो जाता है | इस प्रकार
शास्त्रों में बहुत उपाय बतलाये गये है | जिसको जो मालूम हो पड़े उसको उसी का साधन
करना चाहिये | क्योकि उनमे से किसी भी एक का साधन करने से कल्याण हो सकता है |
वृतिया दो है
अनुकूल और प्रतिकूल | जो मन को अच्छी लगे वह अनुकूल एवं जो मन के विरुद्ध
हो वह प्रतिकूल कही जाती है | कोई भी काम जो मन के अनुकूल होता है उसमे स्वाभाविक
ही प्रसन्नता होती है और जो मन के प्रतिकूल होता है उसमे दुःख होता है | उस दुःख
को भगवान का भेजा हुआ पुरस्कार समझकर उसमे से प्रतिकूलता को निकाल दे और यह
विचार करे की जो कुछ भी होता है भगवान की इच्छा से होता है | भगवान की इच्छा
के बिना पेड़ का एक पत्ता तक नहीं हिल सकता |
हम लोग अनुकूल में तो प्रसन्न होते है और प्रतिकूल में
द्वेष करते है | भला इस प्रकार कहीं भगवान मिल सकते है ? भगवान की प्रसन्नता में ही
प्रसन्नता का निश्चय करना चाहिये | जो बात मन के अनुकूल होती है उसमे तो ऐसा
निश्चय करने में कोई कठिनाई है ही नहीं, लेकिन जो मन के प्रतिकूल हो उसको अनुकूल
बना लेना चाहिये | स्मरण रखना चाहिये की भगवान के प्रतिकूल तो वह है नहीं, उनके
प्रतिकूल होता तो होता ही कैसे ? इस साधना से भी उद्धार हो सकता है |
वाणी से सत्य बोले,व्यवहार सत्य करे, सत्य का आचरण करे |
इससे कल्याण हो सकता है |
साँच बरोबर तप नही झूठ बरोबर पाप |
जाके हिरदै साँच है ताके हिरदै आप
||
सारे संसार में जितने पदार्थ रूप में दिखलाई देते है वे सब
सचमुच नाशवान है | वे जैसे है हमारी आँखों के सामने है | उन सब पदार्थों में
समबुद्धि कर ले | उनमे से भेदभाव उठा ले | किसी भी वस्तु में भेद न रखे | जैसे
शरीर में अपनापन है, भेद नहीं, अंगो में अंतर नहीं; इसी तरह एक-दूसरे में भेद न
रखे | सबमे समता कर ले, भेदबुद्धि उठा दे | इस भेदबुद्धि के उठाने से भी कल्याण हो
जायेगा |
शेष अगले ब्लॉग में ...
नारायण
नारायण नारायण..नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
ब्रह्मलीन परमश्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, भगवत्प्राप्ति
के विविध उपाय, कोड ३०९, गोरखपुर