※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

* एक नम्र निवेदन *

||श्री हरि:||




सर्वसाधारण से नम्रतापूर्वक निवेदन किया जाता है कि यदि उचित समझा जाय, तो प्रत्येक मनुष्य प्रतिदिन परमात्मा के और अपने से बड़े जितने लोग घरमें हों, उन सबके चरणों में प्रणाम करे, हो सके तो बिछौने से उठते ही कर ले, नहीं तो स्नान-पूजादि के बाद करे| गुरु, माता, पिता, ताऊ, चाचा, बड़े भाई, ताई, काकी, भौजाई आदि वय,पद और सम्बन्ध के भेद से सभी गुरुजन हैं |

स्त्री अपने पति के तथा घरमें अपनेसे सब बड़ी स्त्रियों के चरणों में प्रणाम करे | बड़े पुरुषों को दूरसे प्रणाम करे, घर में कोई बड़ा न हो तो स्त्री-पुरुष सभी परमात्मा को ही प्रणाम करें |

इससे धर्म की वृद्धि होगी, आत्मकल्याण में बड़ी सहायता मिलेगी, परमेश्वर प्रसन्न होंगे | इस सुचना के मिलते ही जो लोग इसके अनुसार कार्य आरम्भ कर देंगे, उनकी बड़ी कृपा होगी |*


* जिस देश में गुरुजनों की सेवा-शुश्रूषा करना और उनका सम्मान-अभिवादन करना एक साधारण धर्म था, उस देश के निवासियों को गुरुजनवंदन का महत्त्व बतलाना एक प्रकार से उनका अपमान करना है, परन्तु दुःख के साथ कहना पड़ता है कि समय कुछ ऐसा ही आ गया है | आज पुत्र अपने पिता-माता की चरण-वंदना करने में सकुचाता है | शिष्य गुरु के सामने मस्तक झुकाने में झिझकता है| पुत्रवधू सास के पग लगने में अपनी शान में बाधा समझती है | फलस्वरूप उच्छृङ्खलता बढ़ रही है | कोई किसी की बात का आदर करने को तैयार नहीं | यदि भारत में ऐसी ही दशा बढ़ती रही तो इसका आदर्श ही प्रायः नष्ट हो जाएगा | ऐसे अवसर में इस प्रकार की सलाह देने की बड़ी आवश्यकता है | लोगों को चाहिए चाहिए कि वे श्रीजयदयालजी के उपर्युक्त शब्दों पर ध्यान देकर इस सुन्दर प्रथा को तुरंत जारी कर दें | इससे बड़े लाभ की सम्भावना है |

मनु महाराज भी कहते हैं

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः |
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ||

मनु स्मृति (२| १२१)

जो मनुष्य नित्य वृद्धों को प्रणाम करता और उनकी सेवा करता है उसकी आयु, विद्या, यश और बल बढ़ता है |

चरणों में प्रणाम करनेपर स्वाभाविक ही प्रणाम करनेवाले के प्रति स्नेह बढ़ता है | कई बार तो हृदय बलात् आशीर्वाद देना चाहता है | यद्यपि आशीर्वाद न देना ही उत्तम पक्ष है |आशीर्वाद की जगह भगवन्नाम उच्चारण कर लेना चाहिए | प्रत्येक बालक, युवा, प्रौढ़,वृद्ध को चाहिए कि वह अपने से बड़े जितने लोग घरमें हों, नित्य उनके चरणों में प्रणाम करे | समान उम्र की भाभी या काकी के चरण-स्पर्श न करे, दूरसे प्रणाम करलें | सबमें पवित्र और पूज्यभाव रखे | स्त्रियों को चाहिए कि वे अपने पति के सिवा अन्य किसी पुरुष का चरण-स्पर्श न करें, चाहे वह कोई भी हो | आजकल का समय बहुत खराब है |अन्य बड़े पुरुषों को दूर से प्रणाम कर ले |

    कोई भी घर में बड़ा न हो तो परमात्मा के चरण-कमलों में तो अवश्य प्रणाम कर ले | वंदन भी नवधा भक्तिमें से एक भक्ति है | भगवान् की किसी मूर्ति को अथवा चराचर में व्याप्त विश्वरूप भगवान् को मन-ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए |  
                                                                                       — सम्पादक

जयदयालजी गोयन्दका सेठजी’, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से