|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, पन्चमी, सोमवार, वि०
स० २०६९
भगवान हर जगह हाज़िर है; परन्तु
अपनी माया से छिपे हुए है | बिना भजन न तो कोई उनको जान सकता है और न विश्वास कर
सकता है | भजन से ह्रदय के स्वच्छ होने पर ही भगवान की पहचान होती है | भगवान
प्रयत्क्ष है, परन्तु लोग उनको माया के पर्दे के कारण देख नहीं पाते |
शरीर से प्रेम हटाना चाहिये | एक
दिन तो इस शरीर को छोड़ना ही पड़ेगा, फिर इससे प्रेम करके मोह में पड़ना कोई
बुद्धिमानी नहीं है | समय बीत रहा है, बिता हुआ समय फिर नहीं मिलता, इससे एक क्षण
भी व्यर्थ न गवांकर तथा शरीर के भोगो से प्रेम हटा कर परमेश्वर से प्रेम करना
चाहिये |
जब निरंतर भजन होने लगेगा,तब आप ही
निरन्तर ध्यान होगा |भजन ध्यान का आधार है | अतएव भजन को खूब बढ़ाना चाहिये | भजन
के सिवा संसार में उद्धार का और कोई सरल उपाय नहीं है |
भजन को बहुत ही कीमती चीज समझना
चाहिये | जब तक मनुष्य भजन को बहुत दामी नहीं समझता, तब तक उससे निरन्तर भजन होना
कठिन है | रूपये, भोग, शरीर और जो कुछ भी है, भगवान का भजन इन सभी से अत्यन्त
उत्तम है | इस द्रढ़ धारणा होने से ही निरंतर भजन हो सकता है |
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!