|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, द्वितीय, शुक्रवार, वि०
स० २०७०
प्रत्यक्ष
भगवत्दर्शन के उपाय -१-
आनन्दमय भगवान के प्रयत्क्ष दर्शन
होने के लिए सर्वोत्तम उपाय ‘सच्चा प्रेम’ है | वह प्रेम किस प्रकार होना चाहिये
और कैसे प्रेम से भगवान प्रकट होकर दर्शन दे सकते है ?
इस विषय में आपकी सेवा में कुछ
निवेदन किया जाता है |
अनेक विघ्नं उपस्थित होने पर भी
ध्रुव की तरह भगवान के ध्यान में अचल रहने से भगवान प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते है |
भक्त प्रहलाद की तरह राम-नाम पर
आनन्द पूर्वक सब प्रकार के कष्ट सहन करने के लिए तीक्ष्ण तलवार की धार से मस्तक
कटाने के लिए सर्वदा प्रस्तुत रहने से भगवान प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते है |
श्रीलक्षमण की तरह कामिनी-कन्न्चन
को त्याग कर भगवान के लिए वन-गमन करने से भगवान प्रयत्क्ष मिल सकते है |
ऋषि कुमार सुतीक्ष्ण की तरह
प्रेम्मोनत होकर विचरने से भगवान मिल सकते है |
श्रीराम के शुभागमन के समाचार से
सुतीक्ष्ण की कैसी विलक्षण स्तिथि होती है इसका वर्णन श्रीतुलसीदास जी ने बड़े ही
प्रभावशाली सब्दो में किया है | भगवान शिवजी उमा से कहते है -
होईहैं सुफल आजू मम लोचन |
देखि
बदन पंकज भाव मोचन ||
निर्भर प्रेम मगन मुनि ग्यानी |
कही
न जाइ सो दसा भवानी ||
दिसि अरु बिदिसी पंथ नहीं सूझा |
को
मैं चलेहूँ कहाँ नहीं बूझा ||
कबहुँक फिरि पाछे पुनि जाई |
कबहुँक
निर्त्य करई गुण गाई ||
अबिरल प्रेम भगति मुनि पाई |
प्रभु
देखें तरु ओट लुकाई ||
अतिसय प्रीति देखि रघुबीरा |
प्रगटे
हृदयँ हरण भव् भीरा ||
मुनि मग मांझ अचल होई बैसा |
पुलक
सरीर पनस फल जैसा ||
तब रघुनाथ निकट चलि आये |
देखि
दसा निज जन मन भाए ||
राम सुसाहिब संत प्रिय सेवक दुःख
दारिद दवन |
मुनि सन प्रभु कह आई उठु उठु द्विज
प्राण सम |...शेष अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!