※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

प्रत्यक्ष भगवत्दर्शन के उपाय -२-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

चैत्र शुक्ल, तृतीया, शनिवार, वि० स० २०७०

 प्रत्यक्ष भगवत्दर्शन के उपाय  -२-

गत ब्लॉग से आगे...श्रीहनुमान जी की तरह प्रेम में विह्वल होकर अति श्रद्धासे भगवानकी शरण ग्रहण करने से भगवान प्रत्यक्ष मिल सकते है |

कुमार भरत की तरह राम-दर्शन के लिए प्रेम में विह्वल होने से भगवान प्रत्यक्ष मिल सकते है | चौदह साल की अवधि पूरी होने के समय प्रेममूर्ती भरतजी की कैसी विलक्षण दशा थी, इसका वर्णन श्रीतुलसीदास जी ने बहुत अच्छा किया है

रहेउ एक दिन अवधि अधारा | समुझत मन दुःख भयउ अपारा ||

कारन कवन नाथ नहीं आयउ | जानी कुटिल किधों मोहि बिसरायउ ||

अहह धन्य लक्ष्मण बडभागी | राम पदारबिन्दुं अनुरागी ||

कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा | ताते नाथ संग नहि लीन्हा ||

जो करनी समुझे प्रभु मोरी | नहीं निस्तार कलाप सत कोरी ||

जन अवगुन प्रभु मान न काऊ | दीन बंधु अति मृदुल सुभाहु ||

मोरे जियँ भरोस दृढ सोई | मिलिहहि राम सगुन सुभ होई ||

बीते अवधि रहहीं जो प्राना | अधम कवन जग मोहि समाना ||

राम बिरह सागर मह भारत मगन मन हॉट |

बिप्र रूप धरी पवनसुत आई गयऊ जणू पोत ||

बैठी देखी कुसासन जटा मुकुट क्रश गात |

राम राम रघुपति जपत स्रवतनयन जलपात ||

हनुमान के साथ वार्तालाप होने के अनन्तर श्रीरामचंद्रसे भारत-मिलाप होने के समय का वर्णन इस प्रकार है | शिवजी महाराज देवी पार्वती से कहते है


राजिव लोचन स्रवत जल तन ललित पुलकावली बनी |

अति प्रेम ह्रदय लगाई अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी ||

प्रभु मिळत अनुजहि सोह मो पहि जाति नहीं उपमा कहीं |

जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरी मिले बर सुषमा लही ||

बूझत कृपानिधि कुशल भरतहि बकाहन बेगी न आवही |

सुनु सिवा सो सुख बचन मन ते भिन्न जान जो पाबइ ||

अब कुशल कौशल नाथ आरत जानी जन दर्शन दियो |

बूडत बिरह बिरिस कृपानिधि मोहि कर गहि लियो ||

......शेष अगले ब्लॉग में  

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!