|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, तृतीया, शनिवार, वि०
स० २०७०
प्रत्यक्ष
भगवत्दर्शन के उपाय -२-
गत ब्लॉग से आगे...श्रीहनुमान जी की तरह प्रेम में विह्वल होकर अति श्रद्धासे भगवानकी शरण ग्रहण करने से भगवान प्रत्यक्ष मिल सकते है |
कुमार भरत की तरह राम-दर्शन के लिए
प्रेम में विह्वल होने से भगवान प्रत्यक्ष मिल सकते है | चौदह साल की अवधि पूरी
होने के समय प्रेममूर्ती भरतजी की कैसी विलक्षण दशा थी, इसका वर्णन श्रीतुलसीदास
जी ने बहुत अच्छा किया है
रहेउ एक दिन अवधि अधारा | समुझत मन
दुःख भयउ अपारा ||
कारन कवन नाथ नहीं आयउ | जानी
कुटिल किधों मोहि बिसरायउ ||
अहह धन्य लक्ष्मण बडभागी | राम
पदारबिन्दुं अनुरागी ||
कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा |
ताते नाथ संग नहि लीन्हा ||
जो करनी समुझे प्रभु मोरी | नहीं
निस्तार कलाप सत कोरी ||
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ | दीन
बंधु अति मृदुल सुभाहु ||
मोरे जियँ भरोस दृढ सोई | मिलिहहि
राम सगुन सुभ होई ||
बीते अवधि रहहीं जो प्राना | अधम
कवन जग मोहि समाना ||
राम बिरह सागर मह भारत मगन मन हॉट
|
बिप्र रूप धरी पवनसुत आई गयऊ जणू
पोत ||
बैठी देखी कुसासन जटा मुकुट क्रश
गात |
राम राम रघुपति जपत स्रवतनयन जलपात
||
हनुमान के साथ वार्तालाप होने के अनन्तर
श्रीरामचंद्रसे भारत-मिलाप होने के समय का वर्णन इस प्रकार है | शिवजी महाराज देवी
पार्वती से कहते है
राजिव लोचन स्रवत जल तन ललित पुलकावली बनी |
अति प्रेम ह्रदय लगाई अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी
||
प्रभु मिळत अनुजहि सोह मो पहि जाति नहीं उपमा कहीं |
जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरी मिले बर सुषमा लही ||
बूझत कृपानिधि कुशल भरतहि बकाहन बेगी न आवही |
सुनु सिवा सो सुख बचन मन ते भिन्न जान जो पाबइ ||
अब कुशल कौशल नाथ आरत जानी जन दर्शन दियो |
बूडत बिरह बिरिस कृपानिधि मोहि कर
गहि लियो ||
......शेष अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!