※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 14 अप्रैल 2013

प्रत्यक्ष भगवत्दर्शन के उपाय -३-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

चैत्र शुक्ल, चतुर्थी,  रविवार, वि० स० २०७०

 प्रत्यक्ष भगवत्दर्शन के उपाय  -३-


गत ब्लॉग से आगे...मान प्रतिष्ठा को त्याग कर श्रीअक्रूर जी की तरह भगवान के चरण-कमलों से चिन्हित रज में लोटने से भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन मिल सकते है |

‘जिनके चरणों की परम पावन रज को सम्पूर्ण लोकपालजन आदरपूर्वक मस्तक चढाते है ऐसे पृथ्वीके आभूषण रूप पद्म, यव, अकुंशादी अपूर्व रेखाओं से अंकित श्रीकृष्ण के चरण चिन्हों को गोकुल में प्रवेश करते समय अक्रूर जी ने देखा |

उनको देखते ही आह्लाद से व्याकुलता बढ़ गयी, प्रेम से शरीर में रोमांच हो आये, नेत्रों से अश्रुपात होने लगे | अहो ! यह प्रभु के चरणों की धूलि है, ऐसा कहते हुए रथ से उतर कर अक्रूर जी वहाँ लोटने लगे |’

                                (श्रीमद्धभा० १०|३८|२५-२७)

देह धारियों का यही एक प्रयोजन है की गुरुके उपदेशानुसार निर्धम्भ , निर्भय और विगतशोक होकर भगवान की मनोमोहिनी मूर्ती का दर्शन और उनके गुणों का श्रवणादी करके अक्रूर की भाति हरि की भक्ति करे |


गोपियों के प्रेम को देख कर ज्ञान और योग के अभिमानको त्यागने वाले उद्धव की तरह प्रेम में विह्वल होने पर भगवान प्रत्यक्ष मिल सकते है |


एक पल को प्रलयके समान बितानेवाली रुक्मणि के सदृश श्रीकृष्ण से मिलने के लिए हार्दिक विलाप करने से भगवान प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते है |

महात्माओ की आज्ञा में तत्पर हुए रजा मयूरध्वज की तरह मौका पड़ने पर अपने पुत्र का मस्तक चीरने में भी नही हिचकनेवाले प्रेमी भक्त को भगवान प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते है |


श्री नरसीजी मेहताकी तरह लज्जा, मान, बड़ाई और भय को छोडकर भगवान के गुण-गान में मग्न होकर विचरने से भगवान प्रत्यक्ष मिल सकते है |

‘बी० ए०’, ‘एम० ए०’, ‘आचार्य’ आदि परीक्षायों की जगह भक्त प्रह्लाद की तरह नवधा भक्ति की सच्ची परीक्षा देने से भगवान प्रत्यक्ष दर्शन दे सकते है |


भगवान केवल दर्शन ही नहीं देते वर द्रौपदी, गजेन्द्र, शबरी, विदुरादी की तरह प्रेमपूर्वक अर्पण की हुई वस्तुओं को वे स्वयं प्रगट होकर खा सकते है |


पत्र, पुष्प, फल,जल इत्यादी जो भक्त मेरे लिए प्रेम से अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पआदि मैं सगुण से प्रगट होकर प्रीति-सहित खाता हूँ |’ (गीता ९|२६) 

अतऐव  सबको चाहिये की परम प्रेम और उत्कंठाके साथ भगवद-दर्शन के लिए व्याकुल हों |

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!