|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, पंचमी , सोमवार , वि० स० २०७०
* मनुष्य-जीवन के समय को अमूल्य समझकर उत्तम-से-उत्तम
काममें व्यतीत करना चाहिए। एक क्षण भी
व्यर्थ नहीं बिताना चाहिये ।
* यदि किसी कारणवश कभी कोई क्षण भगवत-चिंतनके बिना बीत जाय
तो उसके लिए पुत्रशोकसे भी बढ़कर घोर पश्चाताप करना चाहिये, जिससे फिर कभी ऐसी भूल
न हो ।
* जिसका समय व्यर्थ होता है, उसने समय का मूल्य समझा ही
नहीं ।
* मनुष्यको कभी निकम्मा नहीं रहना चाहिये ; अपितु
सदा-सर्वदा उत्तम-से-उत्तम कार्य करते रहना चाहिये ।
* मनसे भगवान् का चिंतन, वाणीसे भगवान् के नामका जप, सबको
नारायण समझकर शरीर से जगज्जनार्दनकी नि:स्वार्थ सेवा यही उत्तम-से-उत्तम कर्म है ।
* बोलने के समय सत्य, प्रिय, मिट और हितभरे शास्त्रानुकूल
वचन बोलने चाहिये ।
* अपने दोषों को सुनकर चित्त में प्रसन्नता होनी चाहिये ।
* यदि कोई हमारा दोष सिद्ध करे तो उसके लिए जहाँ तक हो ,
सफाई नहीं देनी चाहिये; क्योंकि सफाई देने से दोषों की जड़ जमती है तथा दोष
बतलानेवालेके चित्त में भविष्य के लिए रूकावट होती है । इससे हम निर्दोष नहीं हो
पाते ।
* यदि हम निर्दोष हैं तो दोष सुनकर हमें मौन हो जाना
चहिये, इससे हमारी कोई हानि नहीं है और सदोष हैं तो अपना सुधार करना चहिये ।
* दोष बताने वाले का गुरुतुल्य आदर करना चाहिये, जिससे भविष्य में उसे दोष बताने में
उत्साह हो ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!