※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें- २


                 
|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, षष्टी,  मंगलवारवि० स० २०७०

*   अपने निकट सम्बन्धीका दोष सहसा नहीं कहना चहिये, कहने से उसको दुःख हो सकता है; जिससे उसका सुधार सम्भव नहीं ।
 
* यदि कहीं किन्हींसे काम लेना हो तो उनको अपने पास न बुलाकर उन्ही के पास जाना चाहिये ।
 
*  सादगी से रहना चाहिये ।
 
*  स्वावलम्बी बनना चाहिये ।
 
*  जीवन को अधिक खर्चीला नहीं बनाना चाहिये । ऋषि-मुनियों का जीवन खर्चीला नहीं था । अधिक खर्चीला जीवन मनुष्य को रुपयों और दूसरे पुरुषों का दास बना देता है, जिसके कारण अनेक पाप करने पड़ते हैं और दर-दर भटकना पड़ता है ।
 
* शरीर निर्वाह के लिए भी अनासक्तभावसे ही पदार्थों का उपयोग करना चहिये ।
 
* भोजन के समय स्वाद की और ध्यान नहीं देना चाहिये;क्योंकि यह पतन का हेतु है । स्वास्थ्य की ओर लक्ष्य रखना भी वैराग्य में कमी ही है ।
 
*  कल्याणकामी पुरुष को तो वैराग्ययुक्त चित्त से केवल शरीर निर्वाहके लिए ही भोजन करना चाहिये । 
 
*  व्यवहार के समय भजन –ध्यान में मुख्य वृत्ति और संसारी कामों में गौण  वृत्ति रखनी चहिये
 
सोते समय भी भगवान् के नाम, रूपका स्मरण विशेषतासे करना चाहिए, जिससे शयन का समय व्यर्थ न जाय । शयनके समय को साधन बनाने के लिए सांसारिक संकल्पोंके प्रवाहको भुलाकर भगवान् के नाम,रूप,गुण,प्रभाव, चरित्रका चिंतन करते हुए ही सोना चाहिए ।
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर


नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!