※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें - ३-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, सप्तमी,  बुधवारवि० स० २०७०
 
 
 
* अपने ऊपर भगवान् की अहैतुकी दया और प्रेम समझ- समझकर हर समय प्रसन्न रहना चाहिये ।
 
* सब प्राणियों पर हेतुरहित दया और प्रेम करना चाहिये ।
 
* एकांत में मन को सदा यही समझाना चाहिये कि परमात्मा के चिंतन के सिवा किसी का चिंतन न करो; क्योंकि व्यर्थ चिंतन से बहुत हानि है ।
 
* भगवान् के सामान अपना कोई हितैषी नहीं है, अत: अपने अधीन सब पदार्थों को और अपने को राजा बलि की भाँती भगवान् के समर्पण कर देना चाहिये ।
 
* भगवत्प्राप्ति के लिये मनुष्य मात्र को पात्र बनना चाहिये । पात्र बनने पर भगवान् स्वयं ही शीघ्र दर्शन दे सकते हैं ।
 
* सुननेवालों की इच्छा के बिना वक्ता को सत्संग के सहस्य की बातें नहीं सुनानी चाहिये ।
 
* जहाँ व्याख्यानदाता बहुत हों, वहां जहाँतक हो व्याख्यान न दें ।
 
* पूजा – प्रतिष्ठा, ऊँचे आसन और ऊँचे पदसे सदा ही दूर रहना चाहिये ।
 
* जहाँ तक जो, गुरु बनने की इच्छा कभी न करें ।
 
* किसी सम्बन्धी की मृत्यु-सूचना मिलने पर, जहाँ आवश्यकता हो, वहाँ जाना चाहिये; किन्तु अपने घरमे किसी के मरने पर, जहाँतक हो, दूरस्थ कुटुम्बियोंको आने के लिये सभ्यतापूर्वक निवारण कर देना चाहिये ।
 
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजीसत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!