|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, सप्तमी, बुधवार, वि० स० २०७०
* अपने ऊपर भगवान् की अहैतुकी दया और प्रेम समझ- समझकर हर समय प्रसन्न रहना चाहिये ।
* सब प्राणियों पर हेतुरहित दया और प्रेम करना चाहिये ।
* एकांत में मन को सदा यही समझाना चाहिये कि परमात्मा के चिंतन के सिवा किसी
का चिंतन न करो; क्योंकि व्यर्थ चिंतन से बहुत हानि है ।
* भगवान् के सामान अपना कोई हितैषी नहीं है, अत: अपने अधीन सब पदार्थों को और
अपने को राजा बलि की भाँती भगवान् के समर्पण कर देना चाहिये ।
* भगवत्प्राप्ति के लिये मनुष्य मात्र को पात्र बनना चाहिये । पात्र बनने पर
भगवान् स्वयं ही शीघ्र दर्शन दे सकते हैं ।
* सुननेवालों की इच्छा के बिना वक्ता को सत्संग के सहस्य की बातें नहीं
सुनानी चाहिये ।
* जहाँ व्याख्यानदाता बहुत हों, वहां जहाँतक हो व्याख्यान न दें ।
* पूजा – प्रतिष्ठा, ऊँचे आसन और ऊँचे पदसे सदा ही दूर रहना चाहिये ।
* जहाँ तक जो, गुरु बनने की इच्छा कभी न करें ।
* किसी सम्बन्धी की मृत्यु-सूचना मिलने पर, जहाँ आवश्यकता हो, वहाँ जाना
चाहिये; किन्तु अपने घरमे किसी के मरने पर, जहाँतक हो, दूरस्थ कुटुम्बियोंको आने
के लिये सभ्यतापूर्वक निवारण कर देना चाहिये ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !!
नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!