※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें - ४-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, अष्टमी,  गुरूवारवि० स० २०७०



 * दहेज़ और दान देना चाहिये; जहाँ तक हो, लेने से बचना चाहिये ।
 
 * जहाँतक हो, पञ्च न बनना चाहिये । बने तो पक्षपात नहीं करना चाहिये ।
 
 * जहाँतक हो, सगाई – विवाह आदि समबन्ध करने के कामसे दूर रहना चाहिये ।
 
 * ब्रह्ममुहूर्त में उठाना चाहिये । यदि सोते सोते ही सूर्योदय हो जाय तो दिनभर उपवास और जप करना चाहिये ।

 * एकान्तके साधन को मूल्यवान बनाने के लिये संध्या, गायत्रीजप, ध्यान, पूजा, पाठ, स्तुति, प्रार्थना , नमस्कार आदि के अर्थ और भाव को समझते हुए ही निष्कामभावसे श्रद्धा-भक्तिपूर्वक नित्य करना चाहिये ।
 
 * भगवत्प्राप्ति पवित्र और एकान्त देश का सेवन, सत्संग और स्वाध्याय , परमात्माका ध्यान और उसके नाम का जप, निष्कामभाव, ज्ञान, वैराग्य और उपरति — इनके सामान कोई भी साधन नहीं है ।
 
 * द्विजातिमात्र को उचित है कि नित्य सूर्योदय और सूर्यास्त से पूर्व ही संध्योपासना और गायत्री जप करे ।
 
 * भगवान् के नाम-रूपको याद रखते हुए ही सामाजिक, व्यवहारिक, आर्थिक आदि काम नि:स्वार्थ भाव से करे ; क्योंकि अपनी सारी चेष्टा नि:स्वार्थभाव से दूसरे के हित के लिये करने से ही कल्याण होता है ।
 
 * स्नान और नित्यकर्म किये बिना दातुन और जलके सिवा कुछ भी मुख में न लें ।

 * श्रीभगवान के भोग लगाकर तथा यथाधिकार बलिवैश्वदेव करके ही भोजन करें ।


 
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजीसत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!