|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, अष्टमी, गुरूवार, वि० स० २०७०
* दहेज़ और दान देना चाहिये; जहाँ तक हो, लेने से बचना चाहिये ।
* जहाँतक हो, पञ्च न बनना चाहिये । बने तो पक्षपात नहीं करना चाहिये ।
* जहाँतक हो, सगाई – विवाह आदि समबन्ध करने के कामसे दूर रहना चाहिये ।
* ब्रह्ममुहूर्त में उठाना चाहिये । यदि सोते सोते ही सूर्योदय हो जाय तो
दिनभर उपवास और जप करना चाहिये ।
* एकान्तके साधन को मूल्यवान बनाने के लिये संध्या, गायत्रीजप, ध्यान, पूजा, पाठ, स्तुति, प्रार्थना , नमस्कार आदि के अर्थ और भाव को समझते हुए ही निष्कामभावसे श्रद्धा-भक्तिपूर्वक नित्य करना चाहिये ।
* एकान्तके साधन को मूल्यवान बनाने के लिये संध्या, गायत्रीजप, ध्यान, पूजा, पाठ, स्तुति, प्रार्थना , नमस्कार आदि के अर्थ और भाव को समझते हुए ही निष्कामभावसे श्रद्धा-भक्तिपूर्वक नित्य करना चाहिये ।
* भगवत्प्राप्ति पवित्र और एकान्त देश का सेवन, सत्संग और स्वाध्याय ,
परमात्माका ध्यान और उसके नाम का जप, निष्कामभाव, ज्ञान, वैराग्य और उपरति — इनके
सामान कोई भी साधन नहीं है ।
* द्विजातिमात्र को उचित है कि नित्य सूर्योदय और सूर्यास्त से पूर्व ही
संध्योपासना और गायत्री जप करे ।
* भगवान् के नाम-रूपको याद रखते हुए ही सामाजिक, व्यवहारिक, आर्थिक आदि काम
नि:स्वार्थ भाव से करे ; क्योंकि अपनी सारी चेष्टा नि:स्वार्थभाव से दूसरे के हित
के लिये करने से ही कल्याण होता है ।
* स्नान और नित्यकर्म किये बिना दातुन और जलके सिवा कुछ भी मुख में न लें ।
* श्रीभगवान के भोग लगाकर तथा यथाधिकार बलिवैश्वदेव करके ही भोजन करें ।
* श्रीभगवान के भोग लगाकर तथा यथाधिकार बलिवैश्वदेव करके ही भोजन करें ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!