※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें -५-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, नवमी,  शुक्रवारवि० स० २०७०



 * तुलसीदल के सिवा चलते फिरते या खड़े हुए कोई भी चीज कभी न खाय ।
 * भोजन के आदि और अंत में आचमन करे ।
 * एकान्त में दो आदमी बात करते हों तो उनकी सम्मतिके बिना उनके समीप न जाय ।
 * जीव हिंसा को बचाता हुआ चले ।
 * घी,दूध,शहद, तेल, जल आदि तरल पदार्थ छानकर काम में ले ।
 * कर्तव्यका पालन न होने पर तथा अपने से बुरा काम बन जाने पर पश्चाताप करे, जिससे फिर कभी वैसा ना हो ।
 * कर्तव्यकर्म को झंझट मान लेने पर वह भार रूप हो जाता है, विशेष लाभदायक नहीं होता ।
 * वही कर्म भगवान् को याद रखते हुए प्रसन्नतापूर्वक मुग्ध होकर किया जाय तो बहुत ऊँचे दर्जे का साधन बन जाता है ।
* अकर्मण्यता(कर्तव्यसे जी चुराना) महान हानिकारक है। पाप का प्रायश्चित है, किन्तु इसका नहीं । अकर्मण्यता का त्याग ही इसका प्रायश्चित है ।

* कर्तव्य पालन रूप परम पुरुषार्थ ही मुक्ति का मुख्य साधन है ।


श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजीसत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!