※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 21 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें- ७-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, दशमी,  रविवारवि० स० २०७०


* ईश्वर ज्ञानके सामान कोई ज्ञान नहीं ।
 
* ईश्वर प्रभाव के सामान कोई प्रभाव नहीं ।
 
* ईश्वर दर्शन के सामान कोई दर्शन नहीं ।
 
* महापुरुषों के आचरण से बढ़कर कोई अनुकरणीय आचरण नहीं ।
 
* भगवद्भावसे बढ़कर कोई भाव नहीं ।
 
* समता से बढ़कर कोई न्याय नहीं ।
 
* सत्य के सामान कोई तप नहीं ।
 
* परमात्मा की प्राप्ति के सामन कोई लाभ नहीं ।
 
* सत्संग के सामान कोई मित्र नहीं ।
 
* कुसंग के सामान कोई शत्रु नहीं ।
 

श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!