|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, एकादशी, सोमवार, वि० स० २०७०
* * दया के सामान कोई धर्म नहीं, हिंसा के सामान कोई पाप नहीं, ब्रह्मचर्य के
सामान कोई व्रत नहीं, ध्यान के सामान कोई साधन नहीं, शान्ति के सामान कोई सुख
नहीं, ऋणके सामान कोई दुःख नहीं, ज्ञान के सामान कोई पवित्र नहीं, ईश्वर के सामान
कोई इष्ट नहीं, पापी के सामान कोई दुष्ट नहीं — ये एक-एक अपने –अपने स्थान पर
अपने-अपने विषयमें सबसे बढ़कर प्रधान हैं ।
* कामी के साख नहीं, लोभी के नाक नहीं, क्रोधी के बाप नहीं, अज्ञानी के थाप नहीं,भक्तके शाप नहीं, नास्तिक के जाप नहीं, ग्यानी के माप नहीं, अर्थात इन लोगों पर इन पदार्थों का प्रभाव नहीं पड़ता ।
* कामी के साख नहीं, लोभी के नाक नहीं, क्रोधी के बाप नहीं, अज्ञानी के थाप नहीं,भक्तके शाप नहीं, नास्तिक के जाप नहीं, ग्यानी के माप नहीं, अर्थात इन लोगों पर इन पदार्थों का प्रभाव नहीं पड़ता ।
* गंगा के सामान कोई तीर्थ नहीं, गौ के सामान कोई सेव्य नहीं , गीता के सामान
कोई शास्त्र नहीं, गायत्री के सामान कोई मंत्र नहीं एवं गोविन्द के सामान कोई देव
नहीं ।
* गंगा-स्नान, गौ की सेवा, अर्थसहित गीताका अभ्यास, गायत्री का जप और गोविन्द का ध्यान — इनमेंसे किसी एकका भी निष्कामभाव और श्रद्धा- भक्ति पूर्वक सेवन करने से कल्याण हो सकता है ।
* जिसने सत्य,अहिंसा,क्षमा,दया,समता,शान्ति,संतोष,सरलता,तितिक्षा, त्याग आदि शस्त्र धारण कर रखें हैं , उसका कोई भी शत्रु किंचिन्मात्र भी अनिष्ट नहीं कर सकता I
* आचरणोंके सुधार की जड़ स्वार्थका त्याग है ।
* झूठसे बचने के लिये जहाँ तक हो, भविष्यके निश्चित वचन नहीं कहने चाहिये ।
* भगवान् की प्राप्ति के सिवा मन में किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं रखनी चाहिये;
क्योंकि कोई भी इच्छा रहेगी तो उसके लिये पुनर्जन्म धारण करना पड़ेगा । इसलिये
इच्छा, वासना, कामना , तृष्णा आदि का त्याग कर देना चाहिये ।
* बार बार मन से पूछे कि “ बतला,
तेरी क्या इच्छा है ?” और मनसे यह उत्तर मिले कि “कुछ भी इच्छा नहीं है ।“ इस
प्रकार के अभ्यास से इच्छा का नाश होता है। यह निश्चित बात है ।
* महात्मा के हृदय में किसी भी प्रकार की इच्छा रहती ही नहीं , हमें भी उसी
प्रकार का बनना चाहिये ।
—श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तकसे, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!