॥श्रीहरिः॥
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण द्वितीया, शनिवार, वि० स० २०७०
शौचाचारसे
सदाचार बहुत ऊँचा है, उस
से भी भगवान् की भक्ति और ऊँचे दर्जे की चीज है ।
भगवान् जाती-पाँति कुछ नहीं देखते,
केवल असली प्रेम ही देखते हैं, अत: मनुष्यको केवल भगवान् से ही प्रेम करना चाहिये
।
ईश्वर,
महात्मा, शास्त्र और परलोक में विश्वास करने वाले पुरुष से कभी पाप नहीं बन सकते । उसमे धीरता, वीरता, गम्भीरता, निर्भयता, समता और शान्ति
आदि अनेक गुण अनायास ही आ जाते हैं, जिससे उसके सारे आचरण स्वाभाविक ही
उत्तम-से-उत्तम होने लगते हैं ।
भगवान्
के नाम,रूप, गुण , प्रभाव, तत्त्व, रहस्य और चरित्रोंको हर समय याद करते हुए मुग्ध
रहना चाहिये ।
भगवान् के गुण, प्रभाव, चरित्र तत्त्व और रहस्य की बातें सुनने, पढ़ने और
मनन करने से श्रद्धा होती है ।
एकान्त में भगवान् के आगे करूण भाव
से रोते हुए स्तुति प्रार्थना करने से भी श्रद्धा बढती है ।
ऊपर बतलाई
हुयी बातों पर विश्वास करके उनके अनुसार अनुष्ठान करने से भी श्रद्धा होती है ।
श्रद्धा
होने पर श्रद्धेय पुरुष की छोटी-से-छोटी क्रिया में भी बहुत ही होने लगता है ।
माता,पिता,पति,स्वामी,ज्ञानी,
महात्मा, और गुरुजनों की श्रद्धा पूर्वक नि:स्वार्थ सेवासे आत्माका शीघ्र कल्याण
हो सकता है ।
निष्कामकर्म
और भगवान् के नाम-जपसे, धारणा और ध्यान से एवं सत्संग और स्वाध्याय से मल-विक्षेप
और आवरण का सर्वथा नाश होकर भगवत्प्राप्ति शीघ्र हो सकती है ।
—श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तकसे, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!