※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें -१३-



श्रीहरिः
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण द्वितीयाशनिवारवि० स० २०७०



शौचाचारसे सदाचार बहुत ऊँचा है, उस से भी भगवान् की भक्ति और ऊँचे दर्जे की चीज है ।

भगवान् जाती-पाँति कुछ नहीं देखते, केवल असली प्रेम ही देखते हैं, अत: मनुष्यको केवल भगवान् से ही प्रेम करना चाहिये ।

ईश्वर, महात्मा, शास्त्र और परलोक में विश्वास करने वाले पुरुष से कभी पाप नहीं बन सकते । उसमे धीरता, वीरता, गम्भीरता, निर्भयता, समता और शान्ति आदि अनेक गुण अनायास ही आ जाते हैं, जिससे उसके सारे आचरण स्वाभाविक ही उत्तम-से-उत्तम होने लगते हैं ।

भगवान् के नाम,रूप, गुण , प्रभाव, तत्त्व, रहस्य और चरित्रोंको हर समय याद करते हुए मुग्ध रहना चाहिये ।

भगवान् के गुण, प्रभाव, चरित्र तत्त्व और रहस्य की बातें सुनने, पढ़ने और मनन करने से श्रद्धा होती है ।

एकान्त में भगवान् के आगे करूण भाव से रोते हुए स्तुति प्रार्थना करने से भी श्रद्धा बढती है ।

ऊपर बतलाई हुयी बातों पर विश्वास करके उनके अनुसार अनुष्ठान करने से भी श्रद्धा होती है ।

श्रद्धा होने पर श्रद्धेय पुरुष की छोटी-से-छोटी क्रिया में भी बहुत ही होने लगता है ।

माता,पिता,पति,स्वामी,ज्ञानी, महात्मा, और गुरुजनों की श्रद्धा पूर्वक नि:स्वार्थ सेवासे आत्माका शीघ्र कल्याण हो सकता है ।

निष्कामकर्म और भगवान् के नाम-जपसे, धारणा और ध्यान से एवं सत्संग और स्वाध्याय से मल-विक्षेप और आवरण का सर्वथा नाश होकर भगवत्प्राप्ति शीघ्र हो सकती है ।

श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तकसेगीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!