॥श्रीहरिः॥
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण तृतीया, रविवार, वि० स० २०७०
{इस पुस्तक का सबसे विशेष भाग - }
शीघ्र
कल्याण चाहने वाले मनुष्य को परमात्माकी प्राप्ति के सिवा और किसी भी बात की इच्छा
नहीं रखनी चाहिये;
क्योंकि इसके सिवा सब इच्छाएँ जन्म-मृत्यु रूप संसार-सागर में भरमाने वाली हैं ।
परमात्मा की प्राप्ति के लिये मनुष्य को अर्थ और भाव के सहित शास्त्रों का
अनुशीलन और एकान्त में बैठकर जप-ध्यान तथा आध्यात्मिकविषय का विचार
नियमपूर्वक नित्य करना चाहिये ।
अनिच्छा
या परेच्छा से होने वाली घटना को भगवान् का भेजा हुआ पुरस्कार मान लेने पर काम-
क्रोध आदि शत्रु पास नहीं आ सकते, जैसे सूर्य के सम्मुख अन्धकार नहीं आ सकता ।
जीव,
ब्रह्म और माया के तत्त्व को समझनेके लिये एकान्त में
बैठकर विवेक और वैराग्ययुक्त चित्तसे नित्यप्रति परमात्मा का चिंतन करते हुए
अध्यात्म-विषय का विचार करना चाहिये ।
जिसने ईश्वर की दया और प्रेम के तत्त्व-रहस्य को जान लिया है, उसके शान्ति
और आनन्द की सीमा नहीं रहती ।
जो
अपने-आप को ईश्वरके अर्पण कर चुका है और ईश्वरपर ही निर्भर है, उसकी सदा-सर्वदा सब
प्रकार से ईश्वर रक्षा करता है, इससे वह सदा के लिये निर्भय-पदको प्राप्त हो जाता
है ।
प्रेमपूर्वक जप सहित भगवान् के ध्यान का अभ्यास, श्रद्धापूर्वक
सत्पुरुषोंका संग, विवेकपूर्वक भावसहित सत- शास्त्रों का स्वाध्याय, दु:खी, अनाथ,
पूज्यजन तथा वृद्धों की नि:स्वार्थभावसे सेवा — इनको यदि कर्तव्यबुद्धिसे किया जाय
तो ये एक-एक साधन शीघ्र कल्याण करने वाले हैं ।
भगवान् बहुत बड़े दयालु और प्रेमी हैं
। जो साधक उनका तत्त्व समझ जायगा, वह भगवान् की शरण होकर शीघ्र ही परम शान्ति को
प्राप्त हो जायगा ।
सर्वत्र
भगवद्भावके सामान कोई भाव नहीं है और सर्वत्र भगवद्भाव होने से दुर्गुण और
दुरुचारों का अत्यंत अभाव होकर सद्गुण और सदाचार अपने –आप ही आ जाते हैं ।
वस्तुमात्र को भगवान् का स्वरुप और चेष्टामात्र को भगवान् की लीला समझने
समझने से भगवान् का तत्त्व समझ में आ जाता है ।
—श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तकसे, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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