※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 28 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें -१४-अंतिम


श्रीहरिः
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण तृतीया, रविवारवि० स० २०७०



{इस पुस्तक का सबसे विशेष भाग - }

शीघ्र कल्याण चाहने वाले मनुष्य को परमात्माकी प्राप्ति के सिवा और किसी भी बात की इच्छा नहीं रखनी चाहिये; क्योंकि इसके सिवा सब इच्छाएँ जन्म-मृत्यु रूप संसार-सागर में भरमाने वाली हैं ।

परमात्मा की प्राप्ति के लिये मनुष्य को अर्थ और भाव के सहित शास्त्रों का अनुशीलन और एकान्त में बैठकर जप-ध्यान तथा आध्यात्मिकविषय का विचार नियमपूर्वक  नित्य करना चाहिये ।

अनिच्छा या परेच्छा से होने वाली घटना को भगवान् का भेजा हुआ पुरस्कार मान लेने पर काम- क्रोध आदि शत्रु पास नहीं आ सकते, जैसे सूर्य के सम्मुख अन्धकार नहीं आ सकता ।

जीव, ब्रह्म और माया के तत्त्व को समझनेके लिये एकान्त में बैठकर विवेक और वैराग्ययुक्त चित्तसे नित्यप्रति परमात्मा का चिंतन करते हुए अध्यात्म-विषय का विचार करना चाहिये

जिसने ईश्वर की दया और प्रेम के तत्त्व-रहस्य को जान लिया है, उसके शान्ति और आनन्द की सीमा नहीं रहती ।

जो अपने-आप को ईश्वरके अर्पण कर चुका है और ईश्वरपर ही निर्भर है, उसकी सदा-सर्वदा सब प्रकार से ईश्वर रक्षा करता है, इससे वह सदा के लिये निर्भय-पदको प्राप्त हो जाता है ।

प्रेमपूर्वक जप सहित भगवान् के ध्यान का अभ्यास, श्रद्धापूर्वक सत्पुरुषोंका संग, विवेकपूर्वक भावसहित सत- शास्त्रों का स्वाध्याय, दु:खी, अनाथ, पूज्यजन तथा वृद्धों की नि:स्वार्थभावसे सेवा — इनको यदि कर्तव्यबुद्धिसे किया जाय तो ये एक-एक साधन शीघ्र कल्याण करने वाले हैं ।

भगवान् बहुत बड़े दयालु और प्रेमी हैं । जो साधक उनका तत्त्व समझ जायगा, वह भगवान् की शरण होकर शीघ्र ही परम शान्ति को प्राप्त हो जायगा ।

सर्वत्र भगवद्भावके सामान कोई भाव नहीं है और सर्वत्र भगवद्भाव होने से दुर्गुण और दुरुचारों का अत्यंत अभाव होकर सद्गुण और सदाचार अपने –आप ही आ जाते हैं ।

वस्तुमात्र को भगवान् का स्वरुप और चेष्टामात्र को भगवान् की लीला समझने समझने से भगवान् का तत्त्व समझ में आ जाता है ।

श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तकसेगीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!! 


    ☰☰☰☰☰☰☰ ❇❇❇❇❇❇❇❇❇ ☰☰☰☰☰☰☰