|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, प्रतिपदा, शनिवार, वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे ... लोगों को चाहियें की वे दया के तत्व को जानने के लिए तत्पर
होकर चेष्टा करे | परमात्मा की दया जानने के लिए मनुष्य को परमेश्वर से नित्य
गद-गद वाणी से विनय पूर्वक प्रार्थना करनी चाहिये | प्रार्थना से, भजन ध्यान से,
उसकी दया के महत्व को यत्किंचित जानने वाले पुरुषों का संग करने से, सत-शास्त्रों
के विचार से और परमेश्वर के किये हुए समस्त विधानों में दया की खोज करने से मनुष्य
दया के तत्व को जान सकता है |
यदपि भगवान की दया के तत्व को बताने वाले महात्माओं का
मिलना बहुत कठिन है तथापि चेष्टा करनी चाहिये |जो महात्मा दया के महत्व को कुछ
जानते है वे भी जितना जानते है उतमा वाणी द्वारा वर्णन नहीं कर सकते | क्योकि
भगवान की इतनी दया है की सारे संसार की दया को इक्कठा करो तो वह भी दयासागरकी दया
के एक कण के बराबर नहीं हो सकती |
जिसके घर में पारस है उसकी दरिद्रता का नाश-जैसे पारस के
प्रभाव को जानते ही हो जाता है, वैसे ही भगवान की दया के प्रभाव को समझने पर
मनुष्य के सब प्रकार के दुखों का सर्वथा नाश हो जाता है | जो मनुष्य भगवान की दया
के प्रभाव को जान जाता है, वह पद-पद पर उस दयालु का स्मरण करके नित्य-निरन्तर
आनन्द में डूबा रहता है | अपने ऐसे प्रियतम सुहृद को कोई कैसे भूल सकता है ? वह जो
कुछ क्रिया करता है, सब उस परम दयालु परमेश्वरके आज्ञानुसार ही करता है | उसकी कोई
भी क्रिया परमात्मा की इच्छा के विपरीत नहीं जा सकती | जब साधारण सत्पुरुष ही अपने
उपकारी और दयालु को भूलकर उसके विपरीत क्रिया नहीं करता तब परमात्मा की दया के
प्रभाव को जानने वाले महात्मापुरुष परमात्मा को कैसे भूल सकते है और कैसे उनके
विपरीत कोई क्रिया कर सकते है ? ऐसे पुरुषों द्वारा किया हुआ आचरण ही ‘सदाचार’
कहलाता है और लोग उसे प्रमाण मानकर उसी के अनुसार चलते है |(गीता ३|२१) |… शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर