|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, त्रयोदशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे....खेद की बात है की आजकल लोग स्वार्थवश किसी साधारण-से-साधारण मनुष्य को भी महात्मा कहने लगे है | ‘महात्मा’ या ‘भगवान’ शब्द का प्रयोग वस्तुत: बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिये | वास्तव में महात्मा तो वे ही है जिनमे महात्माओ के लक्षण और आचरण हों | ऐसे महात्मा का मिलना बहुत दुर्लभ है, यदि मिल भी जाए तो उनका पहचानना तो असम्भव सा ही है, ‘महत्सगस्तु दुर्लभोअगम्योअमोघस्च’ (नारद सूत्र ३९) ‘महात्मा का संग दुर्लभ, दुर्गम और अमोघ है |’
साधारणतया उनकी यही पहचान सुनी जाती है की उनका संग अमोघ होने के कारण उनके दर्शन, भाषण और आचरणों से मनुष्य पर बड़ा भरी प्रभव पडता है | ईश्वर-स्मृति, विषयों से वैराग्य, सत्य, न्याय और सदाचार में प्रीति, चित में प्रसन्ता तथा शान्ति आदि सद्गुणों का स्वाभाविक ही प्रादुर्भाव हो जाता है | इतने पर भी बाहरी आचरणों से तो यथार्थ महात्माओ का पहचानना बहुत ही कठिन है, क्योकि पाखण्डी मनुष्य भी लोगों को ठगने के लिए महात्माओ-जैसा स्वांग रच सकता है | इसलिए परमात्मा की पूर्ण दया से ही महात्मा मिलते है और उनकी दया से ही उनको पहचाना भी जा सकता है |
शेष अगले ब्लॉग में.......
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक, कोड ६८३ से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!