|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आषाढ़ कृष्ण, द्वितीया/तृतीया,
मंगलवार, वि० स० २०७०
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महात्माओं की महिमा
ऐसे महापुरुषों की महिमा का कौन बखान कर सकता है ? श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहास, सन्तो की वाणीऔर आधुनिक महात्माओं के वचन इनकी महिमा से भरे पड़े है |
गोस्वामी तुलसीदासजी ने तो यहाँतक कह दिया है की भगवान को प्राप्त हुए भगवान के दास भगवान से भी बढ़कर है |
मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा | राम ते अधिक राम कर दासा ||
राम सिन्धु घन सज्जन पीरा | चन्दन तरु हरी सन्त समीरा ||
सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत |
श्री रघुबीर परायन जेहि नर उपज बिनीत ||
ऐसे महात्मा जहाँ विचरते है वहाँ का वायुमंडल पवित्र हो जाता है | श्रीनारद जी कहते है ‘वे अपनें प्रभाव से तीर्थों को (पवित्र करके) तीर्थ बनाते है, कर्म को सुकर्म बनाते है और शास्त्रों को शत-शास्त्र बना देते है |’ वे जहाँ रहते है, वाही स्थान तीर्थ बन जाता है या उनके रहने से तीर्थ का तीर्थत्व स्थायी हो जाता है, वे को कर्म करते है, वे ही सुकर्म बन जाते है, उनकी वाणी ही शास्त्र है अथवा वे जिस शास्त्र को अपनाते है, वही सत-शास्त्र समझा जाता है |
शास्त्रों में कहा है ‘जिसका चित अपार संवित सुखसागर परब्रह्म में लीन है, उसके जन्म से कुल पवित्र होता है, उसकी जननी कृतार्थ होती है और पृथ्वी पुण्यवती हो जाती है |’
धर्मराज युधिस्टर ने भक्तराज विदुरजी से कहा था ‘हे स्वामिन ! आप सरीखे भगवदभक्त स्वयं तीर्थ रूप है | (पापियों के द्वारा कलुषित हुए) तीर्थों को आप लोग अपने ह्रदय में स्तिथ भगवान श्रीगदाधरके प्रभाव से पुन: तीर्थतत्व प्राप्त करा देते है |’ (श्रीमद्भागवत १|१३|१०)
महातामों का तो कहना ही क्या है, उनकी आज्ञा पालन करने वाले मनुष्य भी परम पदको प्राप्त हो जाते है | भगवान स्वयं भी कहते है की जो किसी प्रकार का साधन न जानता हो वह भी महान पुरुषों के पास जाकर उनके कहे अनुसार चलने से मुक्त हो जाता है | ‘परन्तु दुसरे इस प्रकार के तत्वसे न जानते हुए दूसरों से अर्थात तत्व को जानने वाले महापुरुषों से सुनकर ही उपासना करते है | वे सुनने के परायण हुए भी मृत्युरूप संसार-सागर से निसंदेह त्र जाते है |
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—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक, कोड ६८३ से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!