भगवान
जल्दी से जल्दी कैसे मिलेँ-यह भाव जाग्रत रहने पर ही भगवान मिलते हैँ।यह
लालसा उत्तरोत्तर बढ़ती चलें।ऐसी उत्कट इच्छा ही प्रेममयके मिलनेका कारण है
और प्रेमसे ही प्रभु मिलते हैँ।प्रभुका रहस्य और प्रभाव जाननेसे ही प्रेम
होता है।थोड़ा सा भी प्रभुका रहस्य जाननेपर हम उसके बिना एक क्षणभर भी नहीँ
रह सकते।
नित्य प्रति सब घर के आदमी इकट्ठे होकर घर में ही अपनी सुविधा अनुसार प्रात्ः काल और रात्रि में गीता, रामायण भागवत आदि किसी भी ग्रन्थ् का क्रमशः स्वाध्याय करे। चाहे आधा घण्टा ही हो - यथा शक्ति प्रयत्न करे। बड़े फायदे की चीज है। घर में जहा तक हो अपने ही आदमियों से किसी से सुने - घर में ही भगवान् की मूर्ति स्थपित करके पूजा करे तो ये मन्दिर में जाकर् करने से श्रेष्ठ् है। घर में अपने हाथ से कर सकते है।
आसक्ति खतरे की चीज़ है| शरिरमें, संसारमें, भोगोंमें जबतक आसक्ति है, तबतक आप भगवानसे बहुत दूर है| गृहस्थाश्रम छोड़कर चाहे घोर जंगल में चले जाइये कोई लाभ नहीं है|
पैदा हो तो आनन्द, मर जाय तो आनन्द, लाखों रुपये चले जायँ तो आनन्द, आ जाय तो आनन्द। शरीरमें बीमारी हो तो आनन्द, मिट जाय तो आनन्द। आनन्दको निरन्तर कायम रखना चाहिये। आनन्द तभी कायम रह सकता है जब कोई घटना हो तो उसे भगवान् की कृपा समझे। यह समझे कि यह भगवान् का मंगलमय विधान है।
भगवत्प्रेमकी अवस्था ही अनोखी होती है।भगवान् का प्रसंग चल रहा है,उसकी मधुर चर्चा चल रही है,उस समय यदि स्वयं भगवान् भी आ जायँ तो प्रसंग चलता रहे,भंग न होने दे।
नित्य प्रति सब घर के आदमी इकट्ठे होकर घर में ही अपनी सुविधा अनुसार प्रात्ः काल और रात्रि में गीता, रामायण भागवत आदि किसी भी ग्रन्थ् का क्रमशः स्वाध्याय करे। चाहे आधा घण्टा ही हो - यथा शक्ति प्रयत्न करे। बड़े फायदे की चीज है। घर में जहा तक हो अपने ही आदमियों से किसी से सुने - घर में ही भगवान् की मूर्ति स्थपित करके पूजा करे तो ये मन्दिर में जाकर् करने से श्रेष्ठ् है। घर में अपने हाथ से कर सकते है।
आसक्ति खतरे की चीज़ है| शरिरमें, संसारमें, भोगोंमें जबतक आसक्ति है, तबतक आप भगवानसे बहुत दूर है| गृहस्थाश्रम छोड़कर चाहे घोर जंगल में चले जाइये कोई लाभ नहीं है|
पैदा हो तो आनन्द, मर जाय तो आनन्द, लाखों रुपये चले जायँ तो आनन्द, आ जाय तो आनन्द। शरीरमें बीमारी हो तो आनन्द, मिट जाय तो आनन्द। आनन्दको निरन्तर कायम रखना चाहिये। आनन्द तभी कायम रह सकता है जब कोई घटना हो तो उसे भगवान् की कृपा समझे। यह समझे कि यह भगवान् का मंगलमय विधान है।
भगवत्प्रेमकी अवस्था ही अनोखी होती है।भगवान् का प्रसंग चल रहा है,उसकी मधुर चर्चा चल रही है,उस समय यदि स्वयं भगवान् भी आ जायँ तो प्रसंग चलता रहे,भंग न होने दे।