|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
श्रावण कृष्ण, दशमी, गुरूवार, वि० स० २०७०
संतभाव की प्राप्ति भगवत्कृपा से होती है
गत ब्लॉग से आगे….लड़का नीचेके तल्ले से ऊपर के तल्ले पर जब चड़ना चाहता है तो
माता उसे सीढ़ियो के पास ले जाकर चढ़ने के लिए उत्साहित करती है | कहती है ‘बेटा ! चढो,
गिरोगे नहीं, मैं साथ हूँ न ? लो, मैं हाथ पकडती हूँ |’ यो साहस और आश्वासन देकर
एक-एक सीढ़ी चढ़ाती है, पूरा ख्याल रखती है, कही गिर न जाए; जरा सा भी डिगता है तो
तुरन्त हाथ का सहारा देकर थाम लेती है और चढ़ा देती है ; बच्चा जब चढ़ने में कठिनाई
का अनुभव करता है तब माँ की और ताककर
मानों इशारे से माँ की मदद चाहता है | माँ उसी क्षण उसे अवलम्बन देकर चढ़ा देती है
और पुन उत्साह दिलाती है | बच्चा कही फिसल जाता है तो माँ तुरन्त उसे गोद में उठा
लेती है, गिरने नहीं देती | इसी प्रकार जो पुरुष बच्चे की भाँती भगवान्-पर भरोसा
(निर्भर) करता है, भगवान उसकी उन्नति और रक्षा की व्यवस्था स्वयं करते है, उसे तो
केवल निमित बनांते है |
सांसारिक माता तो कदाचित
असावधानी और सामर्थ्य के अभाव से या भ्रम से गिरते हुए बच्चे को न भी बचा सके
परन्तु वे सर्वशक्तिमान, सर्वान्त्यामी, परमदयालु, सर्वग्य प्रभु तो अपने आश्रितों
को कभी गिरने देते ही नहीं | वरन उतरोतर उसे सहायता देते हुए, एक-एक सीढी चढाते
हुए सबसे ऊपर के तल्ले पर, जहाँ पहुचना ही जीव का अंतिम ध्येय है, पंहुचा ही देते
है | इससे यह सिद्ध हो जाता है की प्रयत्न भगवान ही करते है, भक्त को तो केवल इच्छा
करनी पडती है और उसी से भगवान उसे निमित बना देते है | शेष अगले ब्लॉग में ...
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!