※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 1 सितंबर 2013

* जन्म कर्म च मे दिव्यं *-8-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

भाद्रपद कृष्ण, एकादशी, रविवार, वि० स० २०७०

 
गत ब्लॉग से आगे.......भगवान् श्रीकृष्ण के कर्मों में और भी अनेक विचित्रताएँ हैं जिनको हम नहीं जान सकते और जो यत्किंचित जानते हैं जिनको हम नहीं जान सकते और जो यत्किंचित जानते हैं उसको भी समझना बहुत कठिन है | हम तो चीज ही क्या हैं, भगवान् की लीलाओं को देखकर ऋषि, मुनि और देवतागण भी मोहित हो जाया करते थे | श्रीमद्भागवत में लिखा है कि एक समय श्रीकृष्णचंद्रजी की लीलाओं को देखकर ब्रह्माजी को भी मोह हो गया था, उन्होंने ग्वालबालों के सहित बछड़ों को ले जाकर एक कन्दरा में रख दिया, महाराज श्रीकृष्णचंद्रजी ने यह जानकर तुरंत वैसे ही दूसरे ग्वालबाल और बछड़े रच लिए और गौओं तथा गोपियों आदि किसी को यह मालूम नहीं हुआ कि यह बालक तथा बछड़े दूसरे ही हैं |

         वास्तव में ब्रह्माजी-जैसे महान देव ईश्वर के विषय में मोहित हो जायँ, यह बात युक्ति से सम्भव नहीं मालूम होती, किन्तु ईश्वर के लिए कोई बात भी असम्भव नहीं है | वे असम्भव को भी सम्भव करके दिखा सकते हैं | विचारने की बात है कि इस प्रकार के अलौकिक तथा अद्भुत कर्म साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है योगीलोग भी नहीं कर सकते |

          परमात्मा के जन्म और कर्म की दिव्यता का विषय बड़ा अलौकिक और रहस्यमय है | अर्जुन भगवान् का अत्यन्त प्रिय सखा था, इसीलिए भगवान् ने यह अत्यन्त गोपनीय रहस्य अर्जुन के प्रति कहा था |

         इस प्रकार भगवान् के जन्म और कर्म की दिव्यता को जो तत्त्व से जानता है वही भगवान् को तत्त्व से जानता है | अतएव हम सबको इसके तत्त्व को समझने की कोशिश करनी चाहिए | जो पुरुष इस तत्त्व को जितना ही अधिक समझेगा, वह उतना ही आनंदमें मुग्ध होता हुआ परमात्मा के नजदीक पहुंचेगा | उसके कर्मों में भी अलौकिकता भासने लगेगी और वह भगवान् के प्रभाव को जानकर प्रेम में मुग्ध हो शीघ्र ही परमगति को प्राप्त हो जायगा |

श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

 नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!